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राघवदास कृत भक्तमाल
नख सख सकल पिबत्र भयो तन मन,
मिटि गई तरंग तलाव की सी उर की। सम दम सुरति सबद स्वासा पांचूं तत,
सुध कोन्ही भूमिका सकल प्राण पुर की। राघो यौं रिझायौ राम जासूं सिधि होत काम,
प्रारति सौं पीवत पीऊख-धारा धुर की ॥४१८
सुंदरदासजी बूसर को बरनन संक्राचारय दूसरौ, दादू के सुंदर भयौ । द्वीत-भाव करि दूरि, येक अद्वीत ही गायौ। जगत भगत षट-दरस, सबनि के चांरिगक लायौ। अपणो मत मजबूत थप्यो, अरु गुर पक्ष भारी।
प्रांन-धर्म करि खंड, प्रजा घट नै निर वारी। भक्ति ग्यान हट सांखि लौं, सर्ब सास्त्र पारहि गयौ। संक्राचारय दूसरौ, दादू के सुंदर भयौ ॥४१६
मनहर
छंद
दादूजी के पंथ मै सुंदर सुखदाई संत,
खोजत न प्रावै अंत ग्यांनी गलतांन है। चतुर निगम षट् षोडस अठार नव,
सर्व को बिचार मार धारयौ सुनि कान है। सांखिजोग क्रमजोग भगति भजन पन,
प्रख जानै सकल अकलि को निधान है।
सी० प्रति का अतिरिक्त छंद है :
माधौदास बरनन बाबू को सिष गुन माधौ देव महामुनि,
द्विजवंस छाडि कुल संतन में पायो है। प्रवर समै सहर सीकरी मैं प्रायौ है,
त्रयोंबाद मुर्ति को छोड़ि दूध-भात कौं पवायो है। साहा अरु नृप देखें और लोक दुनी पेखे,
सिंघ के समीप बैठी भेद न जनायो है। तुरसी हे सुसर जाके राघौ ठहै दास ताके,
___ सभा मधि को इन पूरी गुर पायौ है ।
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