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________________ चतुरदास कृत टीका सहित [ १९५ साढ़ा तीन कोड़ि जीव उधरेंगे ताकै लार, असौ परसंग ताहि बरनि सुनायौ है ॥४०७ अहमदाबाद छाडि पाये जब सांभरि मैं, परचे भये हैं तब माता सुधि पाई है। जैमल को ल्याई गाथा प्रादि सो सुनाई सुत, दिक्षा दिवाई सब संतन कौ' भाई है। सुधि न रहाई प्रेम उमंगि चलाई प्रांखि, नीर भरि आई श्रुति सुख में समाई है। जैमल रमाई जाकी भगति लेकै गाई जैसे, सुनी सो सुनाई सीखै भनें सुखदाई है ॥४०८ जनगोपालजी को बर्नन जनगोपाल दादू तणे, हरि भगतन जस बिसतरयौ । धू पहलाद जड़भरथ, दत्त चौवीसौं गुर को। मोह बबेक दल बरिण, दूरि भ्रम कीयौ उर को। गुर की महिमा करी, जनम गुन परचे गाये। टकसाली पद ग्रंथ, दयाल की छाप सुहाई । प्रेम भगति दुबिध्या रहत, करी बैसि-कुल निसतरयो। जनगोपाल दादू तणे, हरि भक्तन जस बिसतरयौ ॥४०॥ मनहर दादूजी के पंथ मैं चतुर वुधि बातन कौं, जांनिये जनगोपाल सर्बही को भावतो। . नीकों बांणी नृमल मिठास तुक तानन मैं, कांनन मैं होत सुख अर्थ सूं सुनावती। मन बच क्रन हरि हारल को लाकरी ज्यूं, ___ कहनां सहित करुणा-निधांन गावतो। राघो भणि राम नाम प्रादि ऊंकार करि, सोस जगदीसजी कौं बारूंबार नावतो ॥४१० सन्यासी सरूप धारे फिरत जगत मांहि, बिन ग्यांन पायें नहीं उर मैं प्रकास जू। छंद १ कू। २. सुभाये। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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