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राघवदास कृत भक्तमाल
छपै
सीकरी सहर मांहि मिले हैं जनगोपाल,
भये किरपाल गुरदेव दादू दास जू । सीस परि हाथ दयौ दया परसाद नयौ,
देखि के मुदित भयौ नांव में निवास जू । प्रहलाद चरित्र यथा ध्रुव जड़भर्थ कथा, करुणां सूं गाये हरि भक्तन हुल्हास जू ॥४११
बखनांजी को बरनन दादू दीनदयाल के, है बखनौं बात बड़ ॥
गुर-भक्ता जनदास, सील सुठ सुमरन सारौ। बिरहै लपेटे सबद लगत, तिन करत सुमारौ । हरिरस-मद पीय मत्त, रैनि दिन रहै खुमारी।
परचे बांरणी बिसद, सुनत प्रभु बहुत पियारी । माया ममता मांन मद, राघो मन तन मारि छड़ । दादू दीनदयाल के, है बखनौ बानैत बड़ ॥४१२
दादूजी के पंथ मै है बखनौं बरैत कबि, . प्रतिहि चुटावो' ततबेता तुक तान को । जाकी बरल बारणी को बखारण बरिण पावत न,
भारथ मैं बल जैसे पारथ के वान को । जाके पद साखी हद बेहद प्रवेस भये,
जहां लग पावा गछ होत ससि भान कौं। राघो कहै राति-दिन रामजी रिझायौ जिन,
गावत न मांनी हारि गंधर्ब हो गांन को ॥४१३ बखनौं महंत हरि रातो रस मातौ प्रेम,
बोलत सुहातौ मन मोहै जाकी बांनी है। गंध्रव ज्यूं गावै टरि नैंन नीर प्रावै प्रभु,
प्रीति सूं लड़ावै सर्बही को सुखदांनी है। सुमरन सासो सास येक नांव को अभ्यास,
रहै जगसूं उदास असौ गलतांनी है।
. मनहर
छंद
१. चुटाहै।
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