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________________ राघवदास कृत भक्तमाल १९४ 1 मनहर दादूजी के पंथ मैं प्रचंड जती जोगेस्वर, जैमलजु हलाहल भजन पन को भलौ । खालिक सूं खेल्यौ र भरम करम डारे पेलि, च्यारयौं पन राख्यौ है चौहांग ऊजलो पलौ । कहरिण रहरिण धुनि ध्यान ध्रम धारचौ नीके, . भजन भंडारे मैंधि राख्यौ भरि के गलौ। राघो कीन्हीं रासि गुर गोबिंद उपासि करि, बिधि सं निपायौ नीकै रिधि सिधि को खलौं ॥४०४ जैमल चौहारण संत रहै बौंली गांम जहां, बसै भेषधारी इक अगनि चलाई है। भरयौ है अग्यांन मूढ समझे न ग्यांन गूढ, प्रभु भजे ताकै परि मूठ अजमाई है। जैसे प्रहलाद प्राप राखे करतार करी, सासना अपार मारचौ दुष्ट नख ताई है। भये है सहाई गुर मंत्र उचराई राम, रक्षा जु कराई हरि सदा ही सहाई है ॥४०५ दादूजी के पंथ मधि बड़ौ रजबंसी येक, कयौ कछू हावौ जोगी जैमल जुगति सुं। अनभै के प्रागर उजागर गिरा को पुंज, छाजू रुचि भ्रातर विख्यात र भगति सूं। तास के पछोपै सिष पूरण प्रसधि भयो, निश्चै निज नांव लीयौ लीयौ पांचू राखे पति सू। राघो व है राम भरिण सदा रह्यो येक परिण, मन वच क्रम करतार गायौ सत्य सूं ॥४०६ प्रादि कुल कूरम कछयौ है जोगी जुगति सूं, ___ जैमल की माता धनि दाता सुत जायौ है । म्हारि के पहार रहै भारथी मुकंद नान, कीयौ परनाम दक्षा देहु सुत प्रायौ है। सिष नहीं करौं मात प्रगटे सुनांऊं बात, दादूजी दयाल गुर याको यौं बतायौ है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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