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________________ १९२ राघवदास कृत भक्तमाला छपे मनहर प्रिथी अपतेज बाइ रक्षा करै आग्या पाइ, तन मन धन अपि नांव जिन लीयो है। राघो कहै अवनि प्रष्ण भई संत देखि, मुलकत बदन सु हरखत होयो हैं ॥३६६ चतुरभुजजी को बरनन दादू दीनदयाल को, पूरब परसिधि चतुरभुज ॥ कीयौ राम पुर धाम, भक्ति निरगुन बिसतारी। .. गुरभक्ता हरि भक्त, संत भक्ता उपगारी। तुलसीदास हुलास, तास भुज च्यारि दिखाई। बटक वृक्ष के पात, राम रटनां रटवाई। राघो द्वादस सिष सरस, द्वारै दीसत सोम कुज । दादू दीनदयाल को, पूरब परसिधि चतुर भुज ॥३६७ दादूजी के पंथ मैं बड़ी चिराक चतुरभुज, भगति भजन पन कौ कीयौ प्रकास है। भये हैं चिराक सू चिराक सिख सूरबीर, . सदर्गात कोट भृग सम ताकी त्रास है। प्रचाधारी प्रसिद्धि प्रगट भयो पूरब मै, जीव की जीवनि जगदीस जाके पास है। राघो कहै राम जपि पायो है सुहाग भाग, सोभा तीनै लोक जौ लौ धरनि प्रकास है ॥३९८ पोथी करि ल्याये तुलसीदासजी के प्राये, चत्रभुज कह्यौ भाये ब्रह्म चरचा कराइये। गंगाजी के तीर चलैं चत्रभुज कहीं भलैं, म्यांन गली सोधें वार पार की लैं जाइये । चत्रभुज नाम तुम काहे सू कहाये अजु, . चत्रभुज रूप प्रभु जग मैं कहाइये। . धारा मधि पैठि च्यारि भुजाहु दिखाइ दीन्हीं, असे मन भई तुलसीदास समझाइये ॥३६६ वृक्ष येक बट को लगायौ निज हाथ सौं, मेला के समय पूजा करै संत चाइ कैं। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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