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चतुरदास कृत टीका सहित
[ १९१ मनहर टहलड़ी सुथांन तहां मानसिंघ नृप प्रायो,
थार भरि ल्यायो पाक भोजन जिमाइये। कोऊ भाव धारी ल्यायो रोटी तरकारी वह,
लागी अति प्यारी मन भारी सुख पाइये। रजों गुनी दांनौं मन राज सब ठानौं होइ,
बुद्धि ही कौ हांनौं ग्यांन ध्यांन जु गमाइये । - नोऊ मूंठी भर रुध्र दुगध की झरी नृप,
देखि चुप करी जगजीवन न खाइये ॥३९३
बाबा बनवारी हरदास कौ बरनन बाबौ बनवारी हरदास धनि, जिन गुरद्वारै सर्बस दीयौ ॥ दादू गुर दिगपाल, तेज तिहूं लोक उजागर । सिष चहुँ दिसा चिराक, भजन सुमरन के सागर । तिन मधि बरनौं दोइ, उत्म उतराधा भ्राता। सब दिन पर सब रैनि, रहैं हरि सुमरन माता। राघो बलि बलि रहरिण की, भजि भगवंत लाही लीयो।
बाबौ बनवारी हरदास धनि, जिन गुर द्वारै सर्बस दीयौ ॥३६४ मनहर दादूजी के पंथ मैं मगन मन माया जीति, छंद
बाबौ बनवारी भारी सर्व ही कौ भावतौ । प्रमोध्यौ उत्तरदेस धर्म कीन्हो परवेस,
निरंजन निराकारजी को जस गावतौ । रिधि सिधि लीयें लार भजन रदै देकार,
दरसन के कारने गुरू के द्वारै प्रावतौ । राघो बिधि सहित बिसेख पूजि गुर पाट,
छाजन भोजन सर्ब संतौं कौं चढावतौ ॥३९५ गुर चेला रांमति कौं निकसे सहस' भाइ,
दिन के अस्ति भये निसा सैन कीयो है। निरभै निसंक बनवारी सिष प्रमानंद,
प्रांनि के उसीसा रैनि प्रिथी मात दीयौ है।
१. सहज। २. प्रस्त।
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