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________________ राघवदास कृत भक्तमाल १८८] स्या भयांगीर प लिखाइ परवांनौं ल्यायो, - कंचन को अंकुस घड़ायो मद पीजिये । हारै कोऊ चरचा मैं पालकी कहार करौं, जीत सु तौ पंडित है ताकौं यह दीजिये। बांवन अक्षर सुर सप्त तीस भाषा, यासू उपरांति कथै कबि सो कहीजिये। रजब सौं प्रष्ण करी है कबि चारण नैं, दुरसा है नांव ताको उत्तर भनीजिये ॥३८१ मुख सूं अक्षर अरु मुख सूं सप्त सुर, मुख सूं छतीस भाषा जग मैं बखांनियें। ब्यापक पूरण उर बचन रहत सोई, सिव पर ब्रह्मा जस लोकन मैं गांनियें। दुरसा को भर्म भाग्यौ कहै मेरौ भाग जाग्यौ, गुर उपदेस यही सिष मोहि जांनिये । पालको प्रांकुस भलै भेट कीये रजबकी, मन बच काय सेवा प्रीति सौंज मानिये ॥३८२ अन्यात दंडक तुरकां सिरताज पतिसाही दिली तणौ, कड़खा हिंदवां सीस सिरताज राणौं । छंद राज सिरताज अधपत्ति जु प्रांबेर रो, यौ पंथ दादू तरणें रजब जाणौं। अष्ट-कुल प्रबतां मेर सबरै' सिरै, नवकुली नाग सिर सेस प्रारणौं । नव लखा तार मैं चंद सबरै सिर, यौं पंथ दादू त गों३ रजब मारणौ ॥[३८३] हीदवां हद भई साखि · गीता कही, तुरक मुसफरां राड़ि मूंकी। अनभै आत्म जिती, भगत भाखा तिती, तठे रजब रा सबद सौं प्रांट चूकी। १. परं। २. नव लख। ३. तणें । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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