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चतुरदास कृत टीका सहित
[ १७७ खेत मैं न पाये सोऊ लै गयो उठाइ कोऊ,
प्रायौ पुर मथुरा मैं सती सुनी नारो' है। राजा मनि आंनी सब छाड़ी रजधानी कीजे,
गुर ब्रह्मग्यांनी मिले दादू मनि-धारी है ॥३७७
छयै
मनहर
रजबजो कौ बरनन दादू को सिष सावधान, रज्जब अज्जब काम कौ ॥ निराकार निरलेप, निरंजन नगुन भायौ । सबंगी तत कथ्यौ, काबि सब ही को ल्यायौ । साखि सबद अर कबित, बिनां दिष्टांत न कोई। जितने जग प्रसताव, रहे कर जोड़ें दोई। दिन प्रति दूल्है ही रह्यौ, त्यागी सही सु बांम को। दादू को सिष सावधान, रज्जब अज्जब काम कौ ॥३७८ दादूजी के पंथ मैं महंत संत सूरबीर,
रजब अजब सोहै उनकै पटतरे। नारद के धू प्रहलाद रामचंद्र के हनवंत,
कासिब-सुवन जैसे अरक उगंत रे। गोरख के भर्थरी, रामानंद के कबीर,
पीपा के परस भयौ धर्म-धारी संत रे। राघो कहै दत के दिगंबर संकर सिष,
जासू भये दस नाम वोपमां अनंत रे ॥३७६ रज्जब अजब राजथान प्रांबानेरि आये,
___ गुर के सबद त्रिया ब्याह संग त्याग्यौ है। पायो नर देह प्रभु सेवा काज साज येह,
तांकौं भूलि गयौ सठ बिषै रस लाग्यौ है। मौड़ खोलि डारचौ तन मन धन वारयौ सत,
सीलब्रत धारचौ मन मारयौं काम भाग्यौ है । भक्ति मौज दीनी गुर दादू दया कोन्ही उर,
लाइ प्रीति लीनी माथै बड़ौ भाग जाग्यौ है ॥३८०
१. भारो।
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