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राघवदास कृत भक्तमाल
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सुन्दरदासजो बड़ा कौ बरनन इंदव दादू दयाल की साल सिरोमनि, असे घड़े घटवोपमा लाइक । छंद नारद ज्यौं निश्चै निरभै भये, ग्यांन परापरी बेहद बाइक ।
भीव ज्यू भ्रम उड़ायौ अकासकौं, असौ बली सिध साध सहाइक। राघो कहै पुनि बृद्धि पछोपा की, येक सूं येक अनूप महाइक ॥३७१ इम राम रजा रजबंसी बड़ौ, सति सुन्दरदासजी पंथ मैं पूरौ। गौपि रह्यौ पसरचौ न पसारे मैं, न्यारे मैं ऊपज्यो ग्यांन अंकूरौ। निरबोध निरोध' कोयौ निश्चै, उतरचौ पट २ मैं पट है गयौ दूरौ। राघो कहै गुर दादू की दौलति, मोखि भयौ करि मंगल तूरौ ॥३७२ उत्तर देस नरेस को बालक, प्राइ मिल्यो पतिसाहि के ताई। पेलि दयो मजबूत मवासै मैं, जात ही रारि परी परयौ घाई। चाकर लोग चम्मकि गये भजि, ठाकुर खेत रह्यो उहि ठाई । राघो कहैं सति सुंदरदासजि के रक्षपाल भये तहां सांई ॥३७३ देस को लोग मिल्यो मथुरा मधि, प्राइ कहे समचार सती के । अब तो गृह जांऊं नहीं बृह उपज्यौ, जाइ परौं काहू पाइ जती के। त्यागे हथ्यार तुरी चढ़िबो सब, प्रायुध छाड़ि दीये गृहसती के। राघो कहै सति सुंदरदासजि, चालि गये गुरज्ञांन पती के ॥३७४ परका ले मिठाई धरी जब आग, सु नागै कही सुनि बात रे भाई। सांभरि मैं प्रगट सुगुरू करि, दादू के पाइ परौ तुम जाई। मांनि प्रतीति चले प्रति प्रातुर, प्रांन की प्रीति मिले सुखदाई। रायो कहै सति सुंदरदासजि, मिले ब्रष द्यौस हि मैं सुधि पाई ॥३७५ भगवौं करि भेष रहे ब्रष येकहू, जैसे रहै मनि-हीन भुजंगा। काह नै प्राइ पढे पद स्वामी के, मांनौ सुमेर त ऊतरी गंगा। ज्वू धर सूं सनकादिक अंबर, असें चले जैसे हंस बिहंगा।
राघो कहै सति सुंदरदासजी, दादूदयाल के सोभित संगा ॥३७६ मनहर बीकानेरि राजा लघु भ्राता नाम सुंदर हो, छंद
बड़ी सूर बीर महा धर्म तेग सारी है। पातिसाहि फौज दई काबिल की महमि भई,
सत्रुन सौं लरे आप घांऊ परे भारी है।
१. निजबोध नरोध । २. घट ।
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