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________________ राघवदास कृत भक्तमाल ये च्यारि संप्रदा च्यारि मत, क्षत ऊपरि कतहुं न छिपे । जन नानक दादूदयाल, राघो रवि ससि ज्यू दिपं ॥ ३४४ श्री नानकजी को पंथ बरनन उत्तर दिस उत्म भयो, नृगुन भक्त नानक गुरू ॥ क्षत्रीकुल उतपत्ति, ताहि सबही जग जांनें । मिले श्राइ प्रब्रह्म, चरावत पाडी तांन । कौ पाइ रे दूध, कही ये छोटी पाडी । हरण कौ तौ बैठि दूही तब आई नाडी । सीस हाथ धरि यों कह्यौ, नृगुन भक्ति बिसतार कुरू । उत्तर दिस उत्म भयौ, नगुन भक्त नानक गुरु ॥३४५ इंदव चित की वृत्ति जोति करि हरि प्रीति सु, नांव सूं रत्त भयो सेनानक । रांम भजै रस प्रेम कौ पानक । उत्तर देस मैं ऊपजै मांनक | काल करम्म के दै गयौ चानक ॥ ३४६ ज्ञांन करें मुख प्रांनन उच्चरं, केवल येक श्रद्वीत श्रदम्भत, राघो करारी महाकररणी जित, १७६. ] छपै साहिबजादा । भगवंत हसन बालू प्रिये । श्रीनानक गुरतें ऊपजै, उभै भ्रात हरि भक्त ये ॥ लक्ष्मीदास ग्रह बास तास के श्री वंद कै बैराग, उदासी जा श्रीचंद के चतुर सिष, चहुं दिसा उत्तर पूरब दखिन पछिम, प्रसथांन अलमस्त फूल साहिब भगत, श्रीनानक गुर तैं ऊपजै, उभै भ्रात हरि भक्त श्रीनानक गुर पद्धित चली, ताकौ करौ बखांन जू ॥ निराकार निरलेप निरंजन, नानक मिलिया । उनके अंगद भये, रांम भजि रांमहि रलिया । नंद के पुनि अमरदास, श्रमरापद पायौ । रामदास ता पाटि, रांम के अर्जुन हरि गोबिंद हरिराइ जन, हरि कृष्ण तजी हद प्रांन जू । श्रीनानक गुर पद्धित चलो, ताकौ करौ बखांन जू ॥ ३४८ भायौ । इति नानक पंथ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only परसादा । पुजाये । बनाये । ये ॥३४७ www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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