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________________ चतुरदास कृत टीका सहित [ १७५ आरन जान समैं रघुनाथहि, गात चले तन जीवन लेखे । होत सबै दुख दास मुरारि न, पासि गये हरि कै अबरेखै ॥५४६ चतुरपंथ बिगति बरनन-मूल वै च्यारि महंत ज्यू चतुर न्यूह, त्युं चतुर महंत नगुनी प्रगट ॥ सगुन रूप गुन नाम, ध्यान उन बिबिधि बतायो। इन इक अगुन अरूप, अकल जग सकल जितायौ । नूर तेज भरपूरि, जोति तहां बुद्धि समाई। निराकार पद अमिल, अमित प्रात्मां लगाई। निरलेप निरंजन भजन कौं, संप्रदाइ थापी सुघट । वै च्यारि महंत ज्यूँ चतुर ब्यू,त्यूचतुर महंत त्रिगुनी प्रगट ॥३४१ नानक कबीर दादू जगन, राघो परमात्म जपे ॥ नानक सूरज रूप, भूप सारै परकासे । मघवा दास कबीर, ऊसर सूसर बरखा-से । दादू चंद सरूप, अमी करि सब कौं पोषे । बरन निरंजनी मनौं, त्रिषा हरि जीव संतोषे । ये च्यारि महंत चहं चक्क मैं, च्यारि पंथ निरगुन थपे । नानक कबीर दादू जगन, राघो परमात्म जपे ॥३४२ इन च्यारि महंत त्रिगुनीन की, पधित सू निरंजन मिली ॥ रांमांनुज की पधित, चली लक्ष्मी तूं आई। बिष्णुस्वांमि की पधित, सु तौ संकर तैं गाई। मध्वाचार्य पधित, ग्यांन ब्रह्मा सुबिचारा। नीबादित की पधित, च्यारि सनकादि कुमारा। च्यारि संप्रदा की पधित, अवतारन सूह चली। इन च्यारि महंत ब्रिगुनीन की, पधित निरंजन सूमिली ॥३४३ जन नानक दादूदयाल, राघो रवि ससि ज्यू दिपै ॥ मध्वाचार्य के मत ब्रह्मा, विष्णस्वांमि के पति उमा। नीबादित के सनकादिक मत, रामांनुज के मत रंमा । कलपबृक्ष पुनि मध्वाचार्य, बिष्णस्वामि पारस तक्ष । नीबादित चितामनि चहंदिस, रामानुज कलिकांमदुघा लक्ष। टिप्पणी-बूंद Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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