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________________ भक्तमाल इस प्रकार हम देखते हैं कि सन्त एवं भक्तजनों के नामों के संग्रह रूप या उनके चरित को संक्षिप्त या विस्तार से प्रकट करने वाली रचनाओं की परम्परा बहुत लम्बी है। जैन, जैनेतर सभी धर्म-सम्प्रदायों में ऐसी रचनायें बनाई गई हैं। उनमें से बहुत-सी रचनाओं का तो अच्छा प्रचार रहा है। छोटी-छोटी रचनाओं को तो लोग नित्य-पाठ के रूप में पढ़ते रहते हैं। महान् पुरुषों के जीवन से प्रेरणा मिलती रहती है। अतः ऐसी रचनाओं का विशेष महत्त्व है। प्रस्तुत राघवदास की भक्तमाल भी इसी परम्परा की एक विशिष्ट एवं महत्त्वपूर्ण रचना है। उसी के सम्पादन प्रसंग से ऐसी ही अन्य रचनाओं की परम्परा की कुछ जानकारो यहाँ विशेष प्रयत्नपूर्वक देदी गई है। ___ अब प्रस्तुत संस्करण में प्रकाशित "भक्तमाल" के रचयिता राघवदास व उनकी रचनाओं का स्वामी मंगलदासजी से प्राप्त विवरण दिया जा रहा है। राघोदासजी दादूजी महाराज के प्रमुख बावन शिष्यों में बड़े सुन्दरदासजी व प्रह्लाददासजी का समुचित निरूपण है; जैसा कि भक्तमाल टीकाकार चत्रदासजो ने व स्वयं राघोदासजी ने ५२ शिष्यों के निरूपण प्रसंग में "सुन्दर प्रह्लाददास घाटडे सु छींड मधि" (दे०पृ० २७०) ऐसा उल्लेख किया है । किन्तु जहाँ दादूपम्थ का विवरण है, वहाँ प्रह्लाददासजी का विवरण पोता-शिष्यों में है । स्वयं प्रह्लाददासजी ने अपनी वाणी की रचना में सुन्दरदासजो महाराज को गुरु माना है । इस विवरण से (१) दादूजी, (२) सुन्दरदासजी (बड़े), (३) प्रह्लाददासजी, . (४) हरीदासजो (हापौजो), (५) राघोदासजी-यह क्रम है। राघोदासजी का जन्म सत्रहवीं सदी के उत्तरार्द्ध का होना चाहिये। वे सत्रहवीं सदी के अन्तिम चरण में हरीदासजी के शिष्य हुये हैं। उनकी रचना का काल अट्ठारहवीं सदी है। राघोदासजी ने दादूजी की परम्परा में शिष्यों तथा पोता-शिष्यों का भक्तमाल में वर्णन किया है। इससे सिद्ध होता है कि उनके जीवन-काल में जो प्रशिष्य मौजूद थे, उन्हीं तक का निरूपण भक्तमाल में आया है । . वे किस सम्वत में किस स्थान में उत्पन्न हये? यह ज्ञात नहीं होता। प्रह्लाददासजी महाराज घाटडेव में विराजते थे, वहीं उनको चरणपादुका व छत्री आज भी मौजूद है। यह स्थान पहिले अलवर स्टेट में था, अब वह शायद अलवर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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