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________________ भूमिका हितहरिवंश-सम्प्रदाय श्री उदयशंकर शास्त्री ने श्री कृष्ण पुस्तकालय विहारीजी के मन्दिर के पास, वृन्दावन से प्रकाशित “केलिमाल" नामक ग्रन्थ की सूचना दी है, जो हितहरिवंश सम्प्रदाय के भक्तों के सम्बन्ध में है तथा आगरा से प्रकाशित (भारतीय-साहित्य वर्ष ७ अंक १ में) भक्त-सुमरणी-प्रकाश, महषि शिवव्रतलाल रचित सन्तमाल, ( संत नामक पत्रिका के ३ जिल्दों में प्रकाशित ) और खांडेराव रचित भक्त-विरुदावली ( खंडित रूप में हिन्दी विद्यापीठ आगरा के संग्रह में ) प्रादि रचनाओं की जानकारी भी दी है, पर ये ग्रन्थ मेरे अवलोकन में नहीं आये। जैन-धर्म में भक्तमाल जैसी रचनाओं की परम्परा जैन-धर्म म सम्यक् ज्ञान, दर्शन, चारित्र को मोक्ष का मार्ग बतलाया है। सम्यक् दर्शन को सर्वाधिक महत्त्व देने पर भी सम्यक् चारित्र अर्थात् प्राचार को हो प्रधानता दी गई दिखाई देती है। अतः सम्यक् चारित्र की आराधना करने वाले तीर्थंकरों व मुनियों के प्रति विशेष आदर व्यक्त किया गया है। उनके नामस्मरण, गुण-स्तुति और दैत्य-निरूपण सम्बन्धी जैन-साहित्य बहुत विशाल है। नाभादास की भक्तमाल की तरह तीर्थंकरों व मुनियों के नाम स्मरणपूर्वक उनको वन्दना करने वाली रचनायें 'साधु-वन्दना' के नाम से प्राप्त होती हैं। १६ वीं शताब्दी से लेकर २० वीं शताब्दी तक साधु-वन्दना या मुनि-नाममाला जैसी रचनाओं की परम्परा बराबर चली आ रही है। १६ वीं शताब्दी के कवि विनयसमुद्र और पार्श्वचन्द्र की साधु-वन्दना प्राप्त है। १७ वीं शताब्दी के प्रारम्भ के कवि ब्रह्म, विजयदेवसूरि, पुण्यसागर, कुंवरजी, नयविजय, केशवजी, श्रोदेव, समयसुन्दर आदि कवियों की साधु-वन्दना नामक रचनायें प्राप्त हैं। इनमें से समयसुन्दर की रचना सबसे बड़ी है। ५६१ पद्यों को इस साधु-वन्दना को रचना सं० १६९७ अहमदाबाद में हुई है। १८ वीं शताब्दी के कवि यशोविजय और देवचन्द्र तथा १६ वीं शताब्दी के कवि जयमल रचित साधु-वन्दना छप चुकी हैं। माला या मालिका संज्ञक रचनाओं में खरतर-गच्छीय कवि चारित्रसिंह रचित मुनिमालिका स० १६३६ की रचना है, जो हमारे प्रकाशित 'अभय-रत्नसार' में छप चुकी है। २० वीं शताब्दी के मुनि ज्ञानसुन्दर रचित मुनि-नाममाला भो प्रकाशित हो चुकी है, उसमें करीब ७५० मुनियों के नाम हैं। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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