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________________ भक्तमाल 8 ] १६८१ 'वृन्दावनशत' में १६८६ और 'रहसिमंजरी' में १६९८ रचना काल दिया है। इससे उक्त "भक्त-नामावलि" को रचना नाभादास की भक्तमाल के थोड़े वर्षों के बाद ही हुई प्रतीत होती है। (२) रसिक अनन्यमाल-भगवत मुदित रचित इस ग्रंथ का प्रकाशन वृन्दावन से हो चुका है। इसका सम्पादन श्री ललताप्रसाद पुरोहित ने किया है। इसमें ३४ व्यक्तियों की परिचयी पाई जाती है। इसका रचना काल सं० १७०६ से १७२० के मध्य का बतलाया गया है। - इसकी पूर्ति रूप में उत्तमदासजी ने अनन्य-माल की रचना की । वल्लभसम्प्रदाय की ८४, २५२ वैष्णवन की वार्ता भी इसी तरह की गद्य रचनाएँ हैं। गौड़ीय-सम्प्रदाय देवकीनन्दन कृत वैष्णव-वन्दना-वैष्णव-वंदना में अनेक वैष्णवभक्तों की वंदना की गई है। इन व्यक्तिों की जीवनो पर तो विशेष प्रकाश इस रचना से नहीं पड़ता, नाम बहुत से मिल जाते हैं। यही इसका ऐतिहासिक मूल्य है। यह रचना अत्यन्त लोकप्रिय है। ___ माधवदास कृत वैष्णव-वंदना-इस रचना का प्रचार उस वैष्णव-वंदना की अपेक्षा, जो देवकीनन्दन की रचना है, कम है। बंगीय साहित्य-परिषद् ने शिवचन्द शील द्वारा सम्पादित इस रचना को १३१७ बंगाब्द (१९१० ई०) में प्रकाशित किया है। इसमें श्री चैतन्य, नित्यानंद, अद्वैत, हरिदास, श्रीनिवास, रामचन्द्र कविराज, मुरारिगुप्त, वासुदेव इत्यादि का उल्लेख है। रामोपासक-सम्प्रदाय रसिकप्रकाश-भक्तमाल-इसकी रचना छपरा निवासी शंकरदास के पुत्र एवं अयोध्या के श्री रामचरणजी के शिष्य जीवाराम (जुगलप्रिया) ने संवत् १८६६ में की। इसमें रामोपासक रसिक-भक्तों का इतिवृत्त संग्रह किया गया है। उनके शिष्य जानकीरसिकशरणजी ने सं० १९१९ में रसिक-प्रबोधिनी नामक टीका लिखी। २३५ छप्पय और ५ दोहों के मूल ग्रन्थ पर ६१६ कवित्तों में यह टोका पूर्ण हुई है। उक्त रसिक-प्रकाश भक्तमाल, लक्ष्मण किला अयोध्या से प्रकाशित हो चुकी है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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