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भूमिका
रामस्नेही सम्प्रदाय
(१) रामदासजी रचित भक्तमाल १७६ पद्यों की है। जिनमें से १२४ चौपाइयों में अनेक संत एवं भक्तों के नाम दिये गये हैं । यह रचना 'श्री रामस्नेही धर्मप्रकाश' नामक ग्रंथ में सन् १९३१ में प्रकाशित हुई थी । पुनः " श्री रामदासजी की वाणी" में भी प्रकाशित हो चुकी है ।
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२. रामदासजी के शिष्य दयालदासजी ने एक विस्तृत भक्तमाल सं० १८६१ में बनाई है जिसमें सभी प्रचलित पंथों के महात्मानों का निरूपण किया गया है। इस ग्रन्थ का आवश्यक विवरण मैंने अपने अन्य लेख में दिया है ।
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३. रामस्नेही सम्प्रदाय की रैण शाखा (दरियावजी की) के सुखशारणजी भक्तमाल की रचना सं० १६०० में की, जिसका परिमाण १७३५ श्लोकों का है । यह अभी-अभी स्वामी युक्तिरामजी, जोधपुर से प्रकाशित 'श्री सन्तवाणी' ग्रन्थ के पृष्ठ १३९ से ३०६ में प्रकाशित हो चुकी है।
निरञ्जनी सम्प्रदाय
महात्मा प्यारेरामजी ने सं० १८८३ में भक्तमाल की रचना की । इसका विवरण देते हुए स्वामी मंगलदासजी ने अपनी सम्पादित "श्री महाराज हरिदासजी की वाणी" में लिखा है - कि "इस भक्तमाल की रचना मोरिड़ में हुई । प्यारेरामजो अपने गुरु की प्राज्ञा से इसकी रचना की । अवतारों का निरूपण करने के बाद खेमजी, चत्रदासजी, पोकरदासजो, दयालदासजी, सेवादासजी, अमरपुरुषजी व दर्शनदासजी तक का निरूपण किया है । पश्चात अन्य भक्तों का विवेचन किया है । २०४ मनहर कवित्त इस भक्तमाल के हैं, अन्त में ४ दोहे हैं ।" इसकी प्रतिलिपि हमारे संग्रह में भी है |
राधावल्लभ सम्प्रदाय
(१) गोस्वामी हितहरिवंश के शिष्य ध्रुवदासजी ने "भक्तनामावलि" नामक ग्रंथ की रचना की; जिसमें १२३ व्यक्तियों की नामावली दी हुई है । मूल ग्रंथ ११४ पद्यों का है । इसे श्री राधाकृष्णदास ने बहुत अच्छे रूप में टिप्पणी सहित सम्पादित करके सन् १६२८ में प्रकाशित किया, जो नागरी प्रचारिणी सभा, काशी से अब भी प्राप्त है । ध्रुवदासजी की अनेक रचनाओं में से " सभा - मंडली” में
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