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भक्तमाल
उपसंहार का पद्य प्राप्त प्रतिलिपि में नहीं है । यह भक्तमाल भी प्रस्तुत ग्रन्थ के परिशिष्ट नं० ३ में दे दी गई है ।
३. राघवदास की भक्तमाल
प्रस्तुत दादूपंथी कवियों में राघवदास ने ही सब से बड़ी और महत्त्वपूर्ण भक्तमाल बनाई । नाभादास की भक्तमाल के बाद यही सर्वाधिक उल्लेखनीय रचना है । सं० १७१७ में इसकी रचना हुई है । अब से ४८ वर्ष पूर्व इस रचना का परिचय श्री चन्द्रिकाप्रसाद त्रिपाठी ने सरस्वती पत्रिका के अक्टूबर सन् १९१६ के अंक में प्रकाशित 'दादूपंथी सम्प्रदाय का हिन्दी साहित्य' नामक लेख में दिया था । उनका दिया हुआ विवररण इस प्रकार है
"स्वामी दादूदयाल के सम्प्रदाय में एक सन्त राघवदासजी हो गये हैं । उन्होंने भक्तमाल नाम का एक ग्रन्थ रचा है । उसमें शिवजी, अजामिल, हनुमान्, विभीषण आदि से लेकर जितने भक्त हुए हैं, सब का वृतान्त पद्य में दिया है । इस ग्रन्थ में १७५ भक्तों के चरित्र हैं और निम्नलिखित चार सम्प्रदाय और द्वादश पंथ शामिल हैं
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( १ ) स्वतन्त्र भक्त ३१ ।
(२) चार सम्प्रदायी भक्त - (क) रामानुज सम्प्रदाय के १० भक्त । (ख) विष्णुस्वामी सम्प्रदाय के ६ भक्त । ( ग ) मध्वाचार्य सम्प्रदाय के १५ भक्त । (घ) निम्बादित्य सम्प्रदाय के ६ भक्त ।
(३) द्वादस पंथी -- ( क ) षट्दर्शन, सन्यासी, योगी, जङ्गम, जैन, बौद्ध, अन्यान्य । (ख) समुदायी भक्त ४० । (ग) चतुःपन्थी गुरु नानक साहब पन्थ, कबीर साहब के पन्थ के दादूदयाल के पंथ के, निरञ्जन के पंथ के । (घ) माधौकारणी । (ड़) चारण ।
इस ब्योरे से विदित हो जावेगा कि भारतवर्ष की सम्पूर्ण सम्प्रदायों से दादूपन्थियों का मेल है । "
४. चाररण ब्रह्मदासजी की भक्तमाल
राजस्थानी भाषा में रचित ६ भक्तमालों का समूह राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर से प्रकाशित हो चुका है । ब्रह्मदासजी दादूपंथी साधु थे, उनका समय सं० १८१६ के लगभग का है।
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लघु भक्तमाल के नाम से इसकी १ हस्तलिखित प्रति उदयपुर सरस्वती भण्डार में है, उससे मिलान करने पर कुछ नये पद्म मिलने की सम्भावना है।
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