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भूमिका
[ ट व्रजजीवनदास की (मांझा ) भक्तमाल ( इश्कमाला) के साथ ही इसका उल्लेख उक्त श्री भक्तमाल ग्रन्थ के पृष्ठ ६५८ में एवं खोज रिपोर्ट में छपा है |
(१९) भक्तमाला - रामरसिकावली - श्री रघुराजसिंह रचित यह महत्त्वपूर्ण और बड़ा ग्रन्थ लक्ष्मी वैंकटेश्वर प्रेस से सं० १९७१ में छपा था । इसकी पृष्ठ संख्या उत्तर चरित्र के साथ ६८६ है ।
(२०) भक्तमाल के अनुकरण में संवत् १८०७ में हँसवा (फतेहपुर) के चन्ददास ने भक्तविहार नामक ग्रन्थ की रचना की ।
इस तरह की और भी अनेक रचनायें हैं । जिनमें दुःखहरण की भक्तमाल का उल्लेख 'उत्तर भारत की सन्त परम्परा' और मांझा भक्तमाल का उल्लेख 'खोज विवरण' में पाया जाता है ।
(२१) उत्तरार्द्ध भक्तमाल -- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने इसकी रचना की है । 'कल्याण' के भक्त चरितांक के प्रारम्भ में नाभादास की भक्तमाल के बाद इसे भी दे दिया गया है । गोस्वामी राधाचरण तथा गोपालराय कवि वृन्दावन वाले ने एक भक्तमाल बनाई है । उपरोक्त तीनों रचनायें २० वीं शताब्दी की हैं । इससे स्पष्ट है कि नाभादास की भक्तमाला का अनुकरण आज तक होता रहा है। गुजरात, पंजाब, महाराष्ट्र, बंगाल, आदि प्रदेशों में भी भक्तमाल का बड़ा प्रचार रहा है।
अब विभिन्न सम्प्रदायों की भक्तमालों का संक्षित विवरण दिया जा रहा है । दादूपंथी सम्प्रदाय
१. जग्गाजी रचित भक्तमाल
दादू शिष्य जग्गाजी रचित भक्तमाल, जिसमें केवल भक्तों की नामावली दी है, ६ε चौपाई छन्दों में है । उसकी प्रतिलिपि स्वामी मंगलदासजी ने अपने हाथ से करके मुझे भेजी है । उसमें पुराने भक्तों की नामावली ३२ पद्यों में देने के बाद दादूजी के शिष्य आदि संतों के नाम साढ़े पैंसठ पद्यों तक में ठूंस-ठूंस के भर दिये हैं । यह भक्तमाल प्रस्तुत ग्रन्थ के परिशिष्ट नं० २ में दे दी गई हैं । २. चैनजी की भक्तमाल
१ पद्यों की इस भक्तमाल की प्रतिलिपि भी स्वामी मंगलदासजी ने स्वयं करके भेजी है । इसमें भी संतों एवं भक्तों की नामावली ही दी है। अंतिम
भक्तमाल के मूल पद्यों और नये तथ्यों के सम्बन्ध में मेरा एक लेख "सप्त सिन्धु" में शीघ्र ही प्रकाशित होगा ।
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