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________________ ञ ] भक्तमाल लाला गुमानीराम ने की है। 'वात्तिक-प्रकाश' नामक टीका अयोध्या के महात्मा रसरंगमणि ने बनाई, जो रामोपासक सन्तों में प्रसिद्ध हुई। श्री मार्तण्ड बुबा ने सं० १९३३ में मराठी भाषा में छन्दोबद्ध टीका की, लिखा है। वृन्दावन से प्रकाशित श्री भक्तमाल के पृष्ठ ६५५ में लिखा है-"मार्तण्ड बुअा कृत 'भक्त-प्रेमामृत' नामक मराठी टीका, जो सं० १९३८ में पूर्ण हुई, सं० १९८४ में चित्रशाला छापाखाना में मुद्रित हुई है। मराठी में महीपति कृत 'भक्त-लीलामृत', महीपति बुआ कृत 'भक्ति-विजय' नामक ग्रन्थ भी उल्लेखनीय हैं। इनमें से 'भक्ति-विजय' में नाभाजी की भक्तमाल को भाषा ग्वालियेरी बतलाई है। 'हिन्दी को मराठी सन्तों को देन' शोध-प्रबन्ध में 'भक्ति-विजय' १७ वीं शताब्दी में रचित बतलाने से यह उल्लेख महत्त्वपूर्ण है। (१६) बंगला भक्तमाल-लालदास या कृष्णदास बाबाजी रचित । 'हिन्दी और बंगाली वैष्णव कवि' नामक शोध-प्रबन्ध में रत्नकुमारी ने इसका विवरण देते हुये लिखा है-"बंगला के दो कवियों ने भक्तमाल का अनुकरण किया। ये दोनों हो १६ वीं शती के परवर्ती कवि हैं। एक तो लालदास या कृष्णदास बाबाजी रचित ग्रन्थ है, जिसका नाम भी श्री भक्तमाला ही है। इसमें मूल हिन्दी छप्पय देकर फिर उसका बंगला में भाष्य सा किया गया है। उन सम्पूर्ण भक्तों की नामावली तो 'बंगला भक्तमाल' में नहीं है, जो 'हिन्दी भक्तमाल' में है। थोड़े से मुख्य हिन्दी भाषा-भाषी वैष्णव-भक्तों का परिचय है। दूसरी रचना जगन्नाथदास कृत भक्तचरितामृत है। यह भी भक्तमाल का अवलम्बन लेकर रची गई है। ___ लालदास बाबा की उक्त भक्तमाल अविनाशचन्द्र मुखोपाध्याय सम्पादित पूर्णचन्द्र शील, कलकत्ता द्वारा बंगाब्द १३५० साल में प्रकाशित हो चुकी है। (१७) गुरुमुखी भक्तमाल-कीतिसिंह रचित इस ग्रन्थ का उल्लेख वृन्दावन से प्रकाशित भक्तमाल के पृष्ठ ६५६ में किया गया है। (१८) अरिल-भक्तमाल-१४२ अरिल छन्दों में रचित इस भक्तमाल को प्रति गोस्वामी गोवर्द्धनलाल, राधारमण का मंदिर त्रिमुहानी, मिर्जापुर में है। + दुर्गादास लाहिड़ी सम्पादित कलकत्ते से (प्रथम संस्करण बंगाब्द १३१२), द्वितीय संस्करण १३२० में प्रकाशित हुमा। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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