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चतुरदास कृत टीका सहित
कान्हर जनभक्ता ।
नीबौ नेमी भैरांम, ईस्वर बोरम करमसी, सुरतांन सुरक्ता । भगवान राइमल अखैराज, मधुकर संतन बसि परयौ । साधन को सनमान बहु, भूपति कुल मैं इन करंचौ ॥३३४
जैमल की टीका
इंदव जैमल भूप रहै पुर मेरतै, जांनत भक्ति कथा कहि प्राये । छंद संतन सेव करि प्रति प्रीतिहि, हेत सुनौं हरि फेरि लड़ाये ।
मंदिर कौं तलि जांनि छतां परि, बंगलहुं चित रांम कराये । सुंदर सेज पिछांवन वोढ़न, पांन जरी परदा लगवाये ।। ५३५ नीसरनी धरि जाइ सुधारत, दूरि करै फिरि चौकस राख । यौं मन धारत स्यांम पधारत, पांन उगारत पौढन जन तनै तिय जाय चढ़ी धरि, सोत किसौर लखे पति दाखे । होत सुखी सुनि वाहि उरावत, भाग बड़े तिय के हम पाखै ।।५३६
भाखे ।
छपै
[ १७१
मधुकर साह को टीका
इंदेव साह मधुक्कर नांव करयौ सिधि, स्वांग गहै गुन छाड़ि असारें । छंद भूप भयौ सुख रूप सु प्रौंड़छ, लेत बड़ौ पन नांहि बिसारें । माल धरै उनकें पग पीवत, भ्रातं दुखी खरकै गरि डारै । धोइ पिये पग न्ह्याल करयौ मम, दुष्ट परे पग है द्रिग धारें ।। ५३७
मूल
भक्ति उजागर करन कौं, खैमाल रतन राठौर हुव ॥
रांमट राजै ।
निज दासन कौ दास, सरस सुत सेवा सुमर्न ध्यांन, भक्ति दसधा घरि गाजै । नांती नृमलकिसोर, जेण जस नीकौ गायौ । छाजन भोजन प्ररपि, समभि साधन सिर नायौ ।
इम करी जैति जैतारण्यां, जन राघो जिम प्रहलाद ध्रुव ।
जक्त भक्ति बांकीक सीस, दुसह कर्म उर धरयौ, जहर का जांने निराइ, भक्ति महिमां
भक्ति उजागर करन कौं, खेमाल रतन राठौर हुव ॥ ३३५ रांमरैंनि रजु करि दई ॥ ज्यूं पर हित संकर । निंदाकर |
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