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चतुरदास कृत टीका सहित
[ १६९ फौज चढ़ी तब आप चढ्यौ पुर, लूटत हीरन टोप लयौ है। सौ लघु बेचि दये यक राखत, श्रीजगनाथ अरप्पि दयौ है ।।५२३ बात भई पुर भूप लई सुनि, जौ इक दे अनि माफ करे है । प्राइ सबै समझाइ न मानत, जाइ कही उन नां अदरे हैं। अंगद की भगनी नृप कैवत, दे विषि तौ तब पाइ परे हैं। भोजन मै बिष डारि दयो उन, भोग लगाई बुलाइ धरे हैं ॥५२४ ताहि सुता निति संगि जिमावत, वा कित जीमहु ऊठि गई है। खाइ नहीं कछु बौत कही उन, रोइ लगी गरि कैस दई है। रांड जिमाइ दये हरि काढ़त, पात भये जरि वोप नई है। सोक रह्यौ वह काहि सुनांवत, भूप सुनि जिम होत भई है ॥५२५ आप चले जगनाथ चढावन, आई लये नृप फौज चढ़ाई। द्यौ हमकू नग के अब झेलहु, चाकर हैं नृप के न बसाई । नांहि बिगारहु न्हांइ र देबत, डारि दयो जल मांहि दिखाई। ल्यौ प्रभुजी यह है तुम्हरौ नग, भक्त गिरा सुनि धारत आई ॥५२६ ये ग्रह आव तवै जल थाहत, ढूंढ रहे कहु खोज न पायो। भूप गयो सुनि नीर कढावत, पाइ नहीं उर बौ दुख छायो। श्रीजगनाथ कही उन द्यौं सुधि, प्राइ कह्यौ जन देह भूलायो। जाइ लख्यौ हरि कंठ लस्यौ अति, नैंन भयौं सुख जाइ न गायौ ॥५२७ भूप भयो दुख छोड़ि दयो अन, अंगद ल्यावन विप्र पठाये । दे धरनौं नृप वैन कहे सब, आइ दया चलि के पुर आये। सांमुहि प्रांनि परयौ नप पांइन, लाइ लयो उर पेम समाये । भूप दयो सव भक्त करी तब, जीवत लौं हरि के गुन गाये ॥५२८
मूल भूप चत्रभुज भक्ति की, कौ नप करै बरोबरी ॥
सुनें प्रावते संत कौस, चहूं साम्हैं जावत । हरमि प्रांनि सुख देत, प्रभु सम जांनि लड़ावत । धोवत दंपति चरन, वही चरनांमृत लेवत । स्यंघासन पधराइ, नृत्य करि है यौं सेवत । गात रहि करौलीनाथ की, तन माया प्रागै धरी। भूप चत्रभुज भक्ति की, को नृप करै बरोबरी ॥३३३
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