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राघवदास कृत भक्तमाल वहि भक्ति की रीति, पुत्र पोतां चलि पाई। ___ संतन सूं अत प्रीति, नीति कबहू नं घटाई।
सुधि सरीरहू ना रहै, नृति-करत है ध्यान धरि । माधौ प्रेमी भूमि परि, लौटत नोक प्रेम करि ॥३२१
__माधौ प्रेमी की टीका इंदव माधव है पुर नाम गढ़ा गढ़, नृत्य करै बढ़ि प्रेम गिरे है। छंद साखत भूपति पारिख लैनहि, तीसर छाति नचात फिरै है।
घूघर साजि दिखावत साचहि, पायक राह बिचैस परै है। त्रास भयौ नृपदास बढ्यौ हित, प्रीति लखी हद भाव धरै है ॥५२०
इच्छा अंगद भक्त की, श्रीजगन्नाथ पूरी करी॥ छंद
होरा प्रायौ हाथि, ताहि राजा मंगवावै । साम दाम दंड भेद कहै, मन मै नहि प्रावै । चल्यौ चढांवन काज, प्रांनि मग मैं सो लीयो ।
नग नाराइन लेहु, डारि जल मांही दीयो। कोस सात सत प्राइक, राघो धारि लीयौं हरी। इच्छा अंगद भक्त की, श्रीजगन्नाथ पूरी करी ॥३२२
अंगद-भक्त की टोका इंदव भूप सलाहिदि-जू गढराय सु, सेनक कारह अंगद पापी । छंद नारि भगत्त सुं संतन सेवत, आइ कहै गुर गाथ अद्यापी।
देखि इकत न मौन रही कहि हे, जुवतो इन क्यौं रति थापी । ऊठि गये गुर नारि तज्यौ अन, अाइ परयौ पग काम कलापी ॥५२१ अनिन नाहि दिखावत है तिय, कौस करौं मुख नैक दिखावौ। मैं जु तज्यो अन क्यूं करि खावहु, जीवन तो कछ जो तुम पावौ । कैत तिया जिन बोलहु मो सन, प्रांन तज्यौ जब क्यू न समावौ। कौसु करौं जब जात रही बुधि, आइ दया कहि जां उन ल्यावौ ।।५२२ बेगि गयो परि के पग ल्यावत, कैत करौ गुर सिष्य भयो है। माल धरी गर सीस तिलक्कहि, सीतल यो उर भाव नयो है।
१ माधोदास ।
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