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चतुरदास कृत टीका सहित
[ १६७ व्याहत नांहि सुता सु कुवारिहु, है हरि सन्तन को धन भाई। श्रीजगनाथ कही परनाइहु, मैं बसुदेवत नाम न आई। होत बिदा नहि अात भरे दिग, भूप भगत लये अटकाई। सुप्न दयो प्रभु नांहि करौ हठ, हूंडि लिखाइ दई सुखदाई ।।५१८ हुंडि हजार लिखे घर ल्यावत, सो क ल गाय र नाइ दई है। साध बुलाइ खुवाइ दये सब, नेम सध्यौ सुख रासि भई है। वाहि निमंत लई लक्षमी बहु, भक्तन कौं भुगतात नई है। कीरति संत अपार अनंतहि, मैं बुधि मांहि बिचारि लई है ॥५१६.
मूल मनहर छाड़ि के निषध कुल नृगुण उपास्यौ नांव,
साधन की संगति भये है बिग बांदरौ । त्याग के जगत पास जाच्यौ है जगतपति,
__ सांई समर्थ घरि जाइ कीन्हौं सांदरौ। प्रानन के नाथ प्राग हाथ जोरि गाये गुन,
__ भक्ति भंडार उन दयो मंडि मांदरौ। राघौ कहै नीच भये ऊंच रटि राम नाम, वैसे भये मोक्ष तौ काहै कौं कोई कांदरौ ॥३१६
मूल दिवदास दान दयो बंस कौ, हरि सूं हठ करि भक्ति कौ ॥
सुत उपज्यौ सिरदार, जसौधरि हरि उर गरजै। पाटि बैठि पद कोये, धरयो रांमांइण नरजै । ता सुत निज नंददास, निगमचारी कवि हारी। टकसाली पद प्रिय सकल गावै नरनारी। तीन साखि त्रियलोक मधि, जन राघौ मघ गयौ मुक्ति कौ । दिवदास दांत दयो बंस को, हरि सूं हठ करि भक्ति कौ ॥३२० माधो प्रेमी भूमि परि, लोटत नोक प्रेम करि ॥
जांनत सब को पाहि, परचौ ऊंचे तें हरिजन । गांवगढ़ागड़ प्रचुर कीयो, साहिब साचौ पन ।
१. भयो।
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