SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 241
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६६ ] भगतन की पंकति बिषै, लाखे भाग बंटाइयौं ॥ मारू कौ बसिया | संत-श्रंध्री-रज- रसिया । अधिक बनाई । बंस बानरै भयौ, देस नरपति प्राग्यां मांहि, राम नांम सूं मगन, सुमरनी नीलाचल जगनाथ, दंडौता राघौ प्रभु प्रष्ण भये, हूंडी पंकत बिषै, लाखे करतौ जाई । भक्तन को इंदव बांनर बंस कौ जन' छंद संतन सेव करै बिधि देरु भाग लाखा-भक्त को टोका लाखहि, डौंम भयौ सबकै सिर मौरा । भोजन, पावत है सुख सांझ र भौरा । काल परचौ धरि स्वांग न ग्रावत, होइ निबाह न ताकत औौरा । १. अब । राघवदास कृत भक्तमाल राति कही हरि गौहर भैसिहु, ल्यावत हैं करिये जन गौरा ।। ५१३ कोठि धरौ अन खूटत नाहि न काढि पिसाइ र रोट बनावौ । दूध जमाइ वीलोइरि चौपर, छाछि करौ फिरि यौ र जिमावौ । नैंन गये खुलि सो तिय भाखत, आइ स देत भये प्रभु गावौ । प्रातहि श्रावत गाडि र भैंसिहुं, रीति करी वह सन्त न भावी ॥ ५१४ क्यूं करि आवत गेहुर भैंसिहि, प्रीति कहौं ऊनकी नर धारै । गांव हुतौ ढिग होत सभा उत, टूटि गये भइया सु बिचार | भक्त कही इक दंड चुक्यौ ग्रह, त्यौ खबरें जन लाखहि तारें । गेहु पचास दये मन भैसिहु संग चले सबही सिरदारे ।।५१५ मुरधर तैं चलियो सुं दंडौतन, श्रीजगनाथ इसे पन जावें । वारि दयो तन हेत घनौं मन, देह धरें अनि तौ मुरभावे । Jain Educationa International चलाइयौ । बटाइयौ ॥ ३१८ जाइ नर्जक लगे सुखपालहि, भेजि दई हरि लाखहि नांवे । देत बताइ गह्यौ कर जाइ, चलौ प्रभु पाइ सु बेग बुलावै ॥५१६ नांहि चढौं सुखपाल लयो पन, यौं करिये इन भांति निहारीं । स्यांम कही पहराइ सुमनहि, ल्यात बनाइ गरे महि धारौं । बैठि चले सुखपाल लखी मन, ग्राप बढावत है जन तारौं । जाइ निहारत श्रीजगनाथहि, जांनत सो द्रिग तें नहि टारों ॥५१७ For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy