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________________ १६४ ] राघवदास कृत भक्तमाल मूल छपै ये त्रिया कठिन कलिकाल महि, भक्ति करी जग जांनि है ॥ सीता झाली कलाकृत, गढां सोभा लाखां । प्रभुतां मानमती सुमति, गोरां गंगा ये दाखां । ऊमां उबिठा सतभामां, कुवरी गोपाली। रामां जमनां देवको, मृगां मग चाली। कमलां होरा हरिचेरी, कोली कीकी जुग जेवांगनेसदे रानि है। ये त्रिया कठिन कलि काल महि, भक्ति करी जग जांनि है ॥३१४ गनेसदे रांनो को टीका इंदव भूप मधुक्करसाह सुौड़छ, नारि गनेसदे खुब करी है। छंद साध पधारिहि सेवहिबो विधि, संत रह्यौ सुख देत खरी है। देखि इकंत कही धन है कित, होइ बतावह प्रांनि परी' है। जांघ छुरी पहराय गयो भगि, सोचत है नृप जांनि बुरी है ॥५०८ बांधि रु सोइ रही न कही किन, आवत भूप कही तन मैंलौ। तीन गये दिन राय लखी अनि, खोलि कहौ मम नां दुख दैलौ। पूछत है नृप बोलि कही तिय, संभ्रम छाड़हु है कछु सैलौ। दे परिदक्षरण भूमि परयौ नृप, भक्ति करी तजि दंपति गैलौ ।।५०६ प्रभु के संमत संत जे, तिनके मैं सेवक रहूं॥ ____ मयांनंद गोव्यंद, जयंत गंभीरे प्ररजन । जापू नरबाहन गदा, ईस्वर सो गरजन । अनभई धारा रूप, जनार्दन बरीस जीता। जैमल वीदावत ऊदा, रावत सु बिनीता। हेम दमोदर सांपले, गुढलै तुलसी को कहूं। प्रभु के संमत संत जे, तिनकै मैं सेवक रहूं ॥३१५ नरबाहनजू की टोका। इंदव गांव रहै भय है नरबाहन, नाव लई लूटि रोकि स दीयो। छंद भोजन देवन प्रावत दासिहु, आइ दया सु उपायु जु कीयौ । १. परी है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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