SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 237
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ राघवदास कृत भक्तमाल १६२ ] सोम मुकंद गनेस, महदा रघु झाझू लाखा। लक्षमन छीतर बालमीक, त्रिबिक्रम लाला। बृद्ध ब्यास करपूर, बह बल हरिभूभाला। वीठल राघो हरीदास, धूरी घाटम उधव जगन । चितामनि सम दास ये, मन-बंछा-पूरन करन ॥३१० ये सूर धीर थाणांपती, भक्ति करत दिग्गज भगत ॥टे० छीतम देवानंद, द्वारिकादास महीपति । माधव हरीयानंद, खेम बीदा बाजू सुत । बिष्णनंद श्रीरंग, मुकंद माडन भल नरहर । दामोदर भगवान, बालरूपा केसो अरु कान्हर । संतरांम तंबोरी प्रागदास गुपाल, लुहंग नागू सुगत । ये सूर धीर थारणांपती, भक्ति करत दिग्गज भगत ॥३११ प्रचुर सुजस जगदीस को, करन भक्त संसार ये ॥ प्रिय दयाल गोबिंद, विद्यापति बहुरन प्यारे । चतुरबिहारी ब्रह्मदास, लाल बरसांना-वारे । पूरन गंगा राम नृपति, भीषम भगवत रत। प्रासकरन परसरांम, भगत भाई खाटी बत । जनदयाल केसौ कबित, बृजराज-कुवर की छाप दे। प्रचुर सुजस जगदीस कौ, करन भक्त संसार ये ॥३१२ श्रीगोविंदस्वामो को टोका इंदव गोवरधन्न सुनाथ सखावत', खेलत संग सु गौबिंद नाम। छंद स्वामि बिख्यात सुनों उन बात, उनै मन रीति भली अति रांमै । खेमत हे गिहि लाल गये भगि, दाव हुतौ सु गिली दइ स्यामै । संत लखी सुध का धरि काढ़त, जानत नैमत है यह बामैं ।।५०१ कुंड रहे लगि आवहिगो बन, लाइ दये फल सौ भुगतावें। सोच परयौ प्रभू जाइ अरयौ वह, भोग धरयौ सु परयौ नहि पावै । मोहि न भावत कैत गुसाईन, चाहि खुवांवनं वाहि मनांवें । मो परि दाव हुतौ जन को उन, प्राइ दई नहि जांनत भावें ॥५०२ १. सखाहुत । २. नन । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy