________________
चतुरदास कृत टीका सहित
[१६१ तिलोक त्यागी जोधपुर, उधव बिज्वली प्रारथी। ___ कामधेनु कलिकाल मैं, येते जन परमारथी ॥३०६
श्री लडू भक्त को टोका इंदव साखत देस भगत्त लडू हुत, लेस भगत्ति न पापहि पागे। छंद तोषत है दुरगा नर मारि रु, ले सु गये इन मारन लागे।
मूरति नै निकसी धरि रूपहि, काटत हैं सबके सिर भागे । नाचि रही जन के मुख आगर, राखि लये हरि यौं अनुरागे ॥४६६
श्री संत भक्त की टीका संतन सेव लग्यौ मन संतहि, ल्यावत भीखहु गावन गावै । साधु पधारि घरां तिय पूछत, संत कहां खिजि चूल्हहि अावें । साध चले उठि माग मिले जन, हे जु कहां बह बात सुनावै । साचि कही तिय पांच वही हिय, ल्याइ घरां उन खूब जिमावै ॥४९७
. तिलोक सुनार को टोका पूरब माहि सुनार तिलोक सु, संतन सेवन की उर धारी। व्याहत है पुतरी नृप तेहरि, दी घरि बे करि ल्याव सुहारी। साध पधारत है बहु सेवत, धौंस रहे जुग भूप चितारी। बेगि बुलावत ताहि डरावत, ल्यावति हूं कलि नाहि उजारी ।।४६८ आप' गयो दिन नांहि घरी जन, भै उपज्यौ बन जाइ छिप्यौ है। च्यारि रु पांचस आत भये चर, स्याम लयौ घरि भक्ति लिप्यौ है । जाइ दई नृप देखि भयो चुप. धापत नैनन खूब दिप्यौ है। मौज दई अति चूक तजी पति, राय लह्यौ हरि धांम थप्यौ है ।। ४६६ प्रीत महोच्छव ठांनि जिमावत, संतन कं वहु भांति मिठाई । साध सरूप धरयौ सिरनी करि, जाइ कही सु तिलौकहि पाई। कौंन तिलोक नहीं हुत दूसर, होइ सुखी निसि कू घर जाई । देखि भरयौ घर है धन भोजन, जांनि लई हरि होत सहाई ॥५००
छपै छंद
चितामनि सम दास ये, मन-बंछा-पूरन करन ॥
पुष्कर दी सोमनाथ, भीम बोको बी साखा ।
१. प्राइ।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org