SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 235
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६० ] राघवदास कृत भक्तमाल अन के कन बीन प्रहार कियौ जिन, पायौ है भेद भक्ति को नांका। राघौ कहै गलतांन गरीबी सूं, यौं मिले जोति मैं जोति जहां का ॥३०४ इंदव अँसौ लग्यौ रंग रांम मन बीसरै, भूलि गयो दुख देह को द्योग। छंद संतन के दल द्वार सदा रहै, भाव सूं भोजन देत अन्यौगू। टेक यह उर जो ब कही गुर, लेनि बह्यौ निति घरम की तेगू। राघो कहै धनि धीरज सं पर, परचौ प्रचंड मिले हरि बेगू ॥३०५ मूल छप्पै यम हठ करि हरिजी क मिले, सोझा सोझी सदन तजि ॥ बालक उभै उजाडि, समझि करि सूते छाड़े। इनकौं करता राम, दीये परमेसुर आड़े। महा मोह बसि कोयौ, लोभ को लसकर मार्यो । क्रोध बोध करि हयो, रांम भजि काम संघार्यो। राघो इक टग राति दिन, भै मेट्यौ भगवंत भजि । यम हठ करि हरिजी कौं मिले, सोझा सोझी सदन तजि ॥३०६ इंदव चढ़ि खेत खड्यो न पड़यौ पछवो पग,यौं जग जीति गयौ जन सोझौं । छंद कलप्यौ झलप्यौ नकल्यौ कलि मैं, मन मूठि भली द्रिढ ज्ञान को गोझौ । मनसा मनि घेरि चढ़ाये सुमेरिह, कामदुधा करणी करि दोझौ । राघो सुबास छिप नहीं साध को, चंदन के बन बोचि ज्यूं बोझौ ॥३०७ अंसी लगी टग नैंक टरै नहीं, रांम की कीरति गावत कीता। प्रातम येक मुरै न दक्षा देहु, खाट तलें ब्रष द्वादस बीता। रांमजी प्राइ कही समझाइ करो, सिष याहि ज्यूं होइ पुनीता। राघौ कहै उपदेस दियो पंच, तत को सत ले प्रादि अद्वीता ॥३० मूल कांमधेनु कलिकाल मैं, येते जन परमारथी । सूरज लक्षमन लडू, बिमानी खेम उदासी। भावन कुंभनदास, संत लफरा गुन-रासी। हरीदास हरि केस, लुटेरा भरतरु बिरही। नफर प्रजोध्या चक्रपांनि, जाइ सरजू तटि परही। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy