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चतुरदास कृत टीका सहित
[ १५९ श्री राकापति बांका जू को टीका रांकपति पतनी पुनि बांकाहि, रैपुर पंडर रीति सु न्यारी। ल्या लकरी गुदरांन करै उर, नांव धरै वह जांनि जिवारी । नाम कहै प्रभुसौं इन द्यौ कछु, लेत नहीं कहि आप मुरारी। चालि दिखांवहु तौ तव भांवहु, मारग मैं सलका हिम डारी ।।४६३ प्रागय है पति पीछय कौं तिय, आवत सो सलका सु निहारी। जांनि तिया मन मांहि भयो भ्रम, धूरि पगां करि ता परि डारी। बूझत भूमि निहारि कह्यौ' किम, कैत भये अजहूं लछिधारी । रांक कहै मम बाका भई तुब, आप कही हरि साच हमारी ॥४६४
इंदव एक समै रजनी जन जागत, चोरन आइ चहूँ दिस ढूंढा। . छंद माया नहीं सल री तप रेख, लगा रिदै बारह नीकसै मूढा ।
प्रागै परयौ मुख ज्यूं भरचौ भंजन, खोलि र देखे तो नाग फफूढ़ा। राघौ कहै खिज राँका के डारत, सरप थै गयौ सोनि को कूढा । लागे मतौ करने कहा कीजिये, धीजिये नैंक न माया बुरी है। रांका कहै काहू रंकहि दीजिये, ताही के काज कौं प्राय जुरी है। बांका कहै बवरे भये हो, देहुगे किसकौं विष काल छुरी है। राघों कहै तुछ जांनि गये तजि, राकै रु बांका यौ टेक परी है ॥३०३१
टीका नांमहि सौं हरिदैव कहै उर, तौ चलिये लकरीहु सकेरौ । प्रात भये जुग बीनन कौं जन, है इकठी कर सूं नहि छेरै । हौइ चतुर्भुज ल्यात भये घरि, रे मुडफोर प्रभु बन फेरै। दौउ कहै कर जोरि धरौं पट, भार पर्यो इक चोरहि हेरै ।। ४६५
मल इंदव धुनि ध्यान र प्रांन भये परच, निहचै निराकार के सेवग रांका। छंद कली-काल मैं चालह माइ ज्यूं, छाइ महाबितपन्न सबै बिधि बाका।
१. करयो।
"यह इंदव छंद प्रति नं. १ और २ में नहीं है।
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