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चतुरदास कृत टीका सहित
[ १५३ पूछत साखि भरी सुख पावत, व्याहि दई उन गाँव बसे हैं। मूरत राखि लई नृप आत न, है अजहूं उत प्रीति फसे हैं ।।४६६
रामदासजी को टोका गांव डकोर बस दुज' भक्त सु, राम सु दास भगत्ति पियारी। ग्यारसि जाग्रन कै रणछोड़हि, जाइ सदा वृध देह निहारी। आप कही इत प्राव मतै घरि, चालि रहों रथ ल्यावउ चारी। आनि धरौ खिरको पिछवारहि, बाथ धरौ भरि हांकि सवारी ॥४७० जाग्रन आत भयौ चढिकै रथ, जांनि सबै गति पाव थकी है। बारसि रैनि अरद्ध चल्यो धरि, भूषन ले तन प्रीति पकी है। मंदिर खोलिरू देखत नां प्रभु, गैल लगे चढि जाइ हकी है। बाइ धरौ मम बेगि टरौं तुम, पौंचि र मारत चौंट जकी है ॥४७१ ढूंढ लयो रथ पाइ नहीं हरि, सोच करयौ जन भूमि लगाई। येक कही इन वोर पयोहंत, बाइ निहारत हैं रकताई। सेल दयो जन धारि लयो हम, नांहि चलौं बिज रूप बताई। मो सम कंचन ल्यौ धरि तोलहु, नांह मरै तिय कान जिताई ॥४७२ तोलत बारिहु डारि पछै हरि, नांहि उठे पलरौ जित बारी। हौइ उदास चले घर कौं सुख, होत किमे मन नांहि मुरारी। धाम बिराजत है दिज के प्रभु, भक्ति करै सुख दैन तयारी। बांधि लयों बलि यौं बलि बंधन, आयुध को छित चोट बिचारी ॥४७३
मूल श्रबं राजा परिजा थकित है, हरि-जस सुनि हरिदास कौं ॥ जसू-स्वामि को जस बढयो, बृषभ हरि प्राप बनाये । ता पीछे चलि चोर, ले गये सो पुनि ल्याये । नंददास निज धेन, जिवाई नांमा पीछ ।
श्रीरंगनाथजी सीस, नयो वेस्यां के इछ। यम प्रासाजित प्रासू सुवन, जन राघो रटि गुन जास को। श्रब राजा परिजा थकित है, हरि-जस सुनि हरिदास कौ ॥२६५
१. हरि।
२. भूलि। ३. गयो। ४. मनेजि ।
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