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चतुरदास कृत टीका सहित
[ १३९ छपै छंद अब आदिनाथ २माछिद्र (नाथ),गोरख ४चरपढ़'नाथय ।
५धर्मनाथ बुद्धिनाथ, ७सिद्धजी कंथड़ ८साथय । हबिदनाथ श्चौरंग, जलंध्री सतीकरणेरी। ४भडंग ५मीडकोपाव, धुंधलीमल धर फेरी। ७घोड़ाचोली बालगुदाई, सबकौं नाऊं माथ । पहल कबित सिध अष्ट है, प्रथम जांनि नव नाथ ॥२७५ १चूणकर २नेतीनाथ, ३बिप्र ४हाली ५हरताली। ६बालनाथ औघड़, माई हनरवै कौं न्हाली। १०सुरतिनाथ ११भरथरी,१२गोपीचंद १३अाजू १४बाजू । १५कान्हिपाव १६अजैपाल, कियो सब काजू। . १७सिधगरीब १८देवलबैराग, १९चत्रनाथ २०प्रथीनाथ अब। २१सुकलहंस २२रावल २३पगल, राघव के सिरताज सब ॥२७६ महादेव मन जीत ते, नाथ मछिदर अवतरे ॥
अष्टांग जोग अधपत्ति, प्रथम जम-नियमन साधे । आसन प्रारणांयांम प्रत्याहार, धारणा ध्यान समाधि । षष्टचक्र वेधिया, अष्ट कुंभक सौ कीया। मुद्रा दसम लगाइ, बंध त्रिय ता मधि दीया। भक्ति सहित हठजोग करि, जन राघौ यौँ निसतरे। महादेव मन जीत ते, नाथ मछिदर अवतरे ॥२७७ यम जोग जलंध्री को सिरै, गुफा कूप करि मानियो । दक्षा लेणै काज, मात गोपीचंद मेज्यौ । गुर कही बिप्र जै साखि, समझि बिन कूपहि ठेल्यो । उहां ही लगी समाधि, अलख अभियंतर ध्यायो। सपत धात फूतला भसम करि बाहरे प्रायौ। जन राघौ गोपीचन्द कौं, अमर कीयो सिख रानियो । यम जोग जलध्री को सिरै, गुफा कूप करि मानियौं ॥२७८ संसार अध्व निसतारने, करनधार गोरख-जती ॥
भूप भरथरी आदि, कोडि तेती तीउ धारा । सबद श्रवण जा धरयौ, प्रजा का अंत न पारा।
१.बरपट।
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