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राघवदास कृत भक्तमाल : ३नरस्यंघ पारन चंद्रोदय, हरि भक्ति वखांनी । । ४माधव ५मदसूदन-सरस्वती गीता गांनी। जगदानंद प्रबोधानंद, दरांमभद्र भवजल तिर। ये भक्त भागवत धरम रत, इते. सन्यासी सब सिरै ॥२७१ ये सरल सिरोमनि सुधर्मी, इते सन्यासी भक्ति पखि ॥ । माधौ मोह बबेक कीयो, भिन भिन करि न्यारी। : मधुसूदनसरस्वती, मांनं मद तज्यौ पसारौ। ... प्रबोधानन्द रत ब्रह्म, रामभद्र राम रच्यो है। । जगदानंद जगदीस भजि, जे जनम मरणादि बच्यौ है । श्रीधर बिष्णपुरी बिचित्र, जन राघौ अन तजि दुगध भखि । से सरल सिरोमनि सुधरमी, इते सन्यासी भगति पखि ॥२७२ इन मन वच क्रम राघौ कहै, परगट परमातम भजे ॥ श्नृस्यंघभारती ग्यांन, ध्यान धुंनि भलो विचारी। २मुकंदभारथी भक्ति करी, बड़ परचाधारी। है ३सुमेरगिर साच, सील मैं वाहरवांनी'।
४प्रमानंद गिर गिरा, सपूर्ण पूरौ ग्यांनी। ५रामाश्रम जग-जोति ६बन, मन जीयो माया लजे। इन मन बच क्रम राघौ कहै, परगट परमातम भजे ॥२७३
॥ इति सन्यासी दरसन ।
मनहर
चंद
अथ जोगो दरसन ॐकारे आदिनाथ उदैनाथ उतपति,
ऊमांपति स्यंभू सति तन मन जित है। संतनाथ बिरंचि संतोषनाथ बिष्णुजी,
जगनाथ गणपति गिरा को दाता नित है। अचल अचंभेनाथ मगन मछिद्रनाथ,
गोरख अनंत ग्यांन मूरति सु बित है। राघो रक्षपाल नऊ नाथ रटि राति दिन,
जिनको अजीत अबिनासी मधि चित है ॥२७४
१. बारहवांनी।
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