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चतुरदास कृत टीका सहित
[ १३० टीका संकराचार्य जू की रांम समुख्य किये विमुखी नर, लै जग में प्रभुता बिसतारी। जैन-जती सब फैलि रहे जग, हाथि न आवत वात बिचारी। देह तजी नृप के तन पैसत, ग्रंथ दयौ करि मोह निवारी। सिष्यन सू कही देह अवेसहि, देखि सुनावह आत तयारी ॥४१४ जांनि अवेसहि सिख्य गये महि, मोहमुदग्गर ग्रंथ उचारयो। कान परयौ तन त्यागि बरे निज, दास नये अपनौ पन पारयो। जीति जती नृप पैं चढ़ि जावत, बैठि कनै च जमायक डारयौ। नीर चढ्यौ वहु नाव दिखावत, बेगि चढ़ौ नहीं बूड़त धारयौ ॥४१५ संकर कैत चढाइ जती इन, भूप चढ़ात गिरे स मरे हैं। पाइ परयौ नृप होत खुसी मन, जौउ कहे ध्रम सोउ धरे हैं। भक्ति सथापि र ज्ञान प्रकासत, तदै निरबेद हि भाव भरे हैं। रीति भली करि साध लही उर, हेत हरी गुन रूप करे हैं ।।४१६
मूल उतकष्ट-धर्म भागवत मैं, श्रीधर नै बरनन करयौ ॥
प्रज्ञांनी तृय कांड मिले, सब कोई भाखे । ज्ञांनी पर करमिष्ट, अरथ को अनरथ दाखै । राखी भक्ति प्रधान, करी टीका बिसतीरन ।
अगम निगम अबिरूद्ध, बहुरि भारत की सीरन । किरपा परमानंद की, माधोजी ऊपरि धरयो। उतकष्ट-धरम भागवत मै, श्रीधर नै वरनन करयौ ॥२७०
श्रीधरजू की टोका इंदव पंडित ब्याज रहे सु बड़े बड़, भागवतं करि टिप्पण रीजै। छंद होत बिचार पुरी हु बनारस, जो सबके मन भाइ लिखीजै।
तो परमांन करै बिंद्र माधव, बात भली धरि मंदिर दीजे। जाइ धरे हरि हाथन सू करि, दै सरबोपर चालत धीजे ॥४१७
मल छपै ये भक्त भागवत धरम रत, इते सन्यासी सर्व सिर ।
रामचंद्रिका सुष्ट, १दमोदर तीरथ गाई । २चितसुख टीका करी, भक्ति प्रधान दिखाई।
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