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चतुरदास कृत टीका सहित
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मूल
छौ दास गदाधर गिरधरन, गाये ग्यांनी बिसद गिर ।
लाल बिहारी स्यांम, सुमरि निसबासुर राजी। पूजा प्रेम पियास, भक्ति सुख सागर सांजी। संतन सेती हेत, देत तन मन धन सरबस ।
उर अंतर अति गूझ, बदन बरनत निरमल जस। इकतार ऐक हरि-भक्ति को, और नवावत नांहि सिर । दास गदाधर गिरधरन, गाये ग्यांनी बिसद गिर ॥२५८
गदाधरदासजी की टोका इंदव वाग बुरहानपुरै ढिग बैठिक, त्यागि घरै हरि सूं अनुरागे । छंद जात नहीं पुर लोग निहौरत, मांनि लयौ सुख और न पागे।
मेह भयौ तन भीजि गये कफ, स्यांम कहैन स आय न लागे। साहि कही प्रभु ल्याव उन्है इत, मन्दिर दे करवाय सभागे ॥३९५ ल्यावत नीठि कही हरि प्राइस, मन्दिर ऊँच कराय उदारै । लाल बिहारिहु स्यांम सथापन, रूप मनौहर आप निहारै। संतन सेवत प्रीति लगाय र, अंन न राखत पांन सवारै। सामगरी कुछि राखि रसोयहु, आत भये जन ज्यांय पियारै ॥३९६ दास कहै प्रभु लोग' रख्यौ कछु, काढ़ करौ परभातिहि आवै । संत जिमाइ दये करि भोजन, पाय सुखी सब वै जस गावै। भूख लगी हरि जांम गई मुरि, कोप करै हम गैल छुटावै । प्राय धरे सत दो रुपया किन, लै सिरि मारि कही गुर तावै ॥३९७ साह डरयो मति मो परि कोपत, भक्त खुसी करि बात जनाई। होइ मगन्न जितौ ग्रन लागत, देत भयौ जन प्रीति बधाई। जात भये मथुरा दिन रै करि, पीत रसै बृज माधुरताई। लाल लंडावत साध रिझावत, गाय कहे गुन बुधि लगाई ॥३९८
छपै
यौं वो हरिबंस प्रताप तै, चहु दिसि परगट चतुरभुज ॥ भिन भिन भक्ति प्रताप, भक्तबछल जस गायौ।.
१. भोग।
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