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चतुरदास कृत टीका सहित
[ १२९ सेवत महाप्रसाद, सदा ब्रत तप नहीं माने। बिधि निषेध भ्रम सकल, छाडि उत्म धर्म ठाने। .. राघो व्यास बिचित्र सुत करनो पालत हंस की। भक्ति सीर सकृत कोउ, जांनत हितहरिबंस की ॥२५५
टोका हरिबंसजो की इंदव आत भये तजि धाम भजे जुग, विप्र भलै हरि प्राइस दीनी। छंद तेरि सुता जुग दै हरिबंसहि, नाम कहौ मम बंस ब्रधीनी।
संतन सेव बनै इनकै घर, दुष्ट न ह गति यौं सुनि लीनो । मांनि गह्यौ ग्रह आप लह्यौ सुख, जाइ कही किम सो रस भीनीं ॥३८६ लाल कही मम पूजन धारहु, कुंज बिलास कहौं रस नीको । सो बिसतारत नैन लख्यौ सुख, बाम लयौ पक्षि जीवनि जी को। गांन' करै रसपांन बरै उर, ध्यान धरै सु सदा प्रिया पी को। है गुन बौत सरूप कहै किम, मोद लहै मन और नहीं कौ ॥३८७ रीति लहै हितजू कि बड़ी पट, कृष्ण पछैरू कहै मुखि राधा। भाव विकट सुभाव न होवत, आप दया करि देत अराधा । दूरि करे बिधि और निषेधहि, दंपति है उर के उह साधा। दैन सबै सुख दास चरित्रहु, जानत है उनकै नहि बाधा ॥३८८
मूल छपै यौं नांव न बिसरै नैंक हूं, हरिबंस गुसांई हरि ह्रिदै ॥
ता सुत ब्यास बिचित्र, बड़ौ परमारथ कोन्हौ । भरम करम सूं रहत, भक्ति को स्वारथ लीन्हौं। पद गावत पापी हसे, करमिष्टी छिरके कांन । नाम कबीर रैदास कौं, ब्यास दीयौ तहां मांन । जन राघो कारनि रांम के, जन पन तजै न अपनी श्रिदै । यौं नांव न बिसरै नैक हूं, हरिबंस गुसांईं हरि ह्रिदै ॥२५६ ब्यास गुसांई विमल चित, बांनां सूं अतिस बिनै ॥
चौबीसौं अवतार, अधिक करि साध बिसेखे। सपतदीप मधि संत, तिते सर्व गुर करि लेखे ।
१. ग्यांनी
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