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राघवदास कृत भक्तमाल काम नहीं जल दूध पिवौ भल, ल्यौ बृज मैं प्रभु प्राइस दीनी। ये बृज के जन लेव न देत न, तौ बरजै नहि यौं सुनि लीन्ही। ल्यावत धांमन धांमन सौं फिरि, स्यांम कही परितीतहु चोन्हीं। जाइ छिपावत हेरहि ल्यावत, बात सबै जन की रसभीनीं ॥३८५
मूल छपे सोभा सोभूरांम का, भ्रातां को सुनि यौँ सबै ॥
माधौदास महंत, भक्ति जग सक्ति दिखाई। प्राइस सूं संबादि, अग्नि पैं चदरि मगाई। संतदास सुठ सील, साच सुमरण को सागर ।
साध सेव करि निपुन, कर्म भ्रम छेके कागर । भगवत भजन बधांवन, प्रालस नांहि कीयौ कब । सोभा सोभूरांम का, भ्रातां की सुनियौं सबै ॥२५२ प्रात्मारांम कन्ह र दयाल, बूड़े बिपुल बिराजही ॥
रहत सहनता गहर, मिहर गुन सुभ के प्रागर । अडिग जन गोपाल, धारि दुजकुल मै नागर । संत भू में सकल मांनि, उर प्रीति हुलास । ' बसतर भोजन पान, मान दे सब प्रास्वास। सिष सुठ सोभूरांम का', पाप बन्या पुनि पाजही। । आत्माराम कन्ह र दयाल, बूड़े बिपुल बिराजहीं ॥२५३ वृंदावन बसि बसि कीयौ जिन, जिन जन मन प्रापरणौँ ॥
सोई सर्ब संत बखांरिण, प्रांणि अंतरगत मन कौं। सम दम सोधि सरीर, गिरा पूछहु गुरजन कौं। प्राचारिज मुनि मिश्र, भटहु हरिबंस व्यास भरिए ।
गंगल गदाधर चत्रभुज, अवर संतन सर्बस गिरिण । राघो रटि बिरकत गृही, उर हरि भक्ति उद्यापरणौ। बृदाबन बसि बसि कीयो जिन, जिन जन मन आपणौ ॥२५४ यौं भक्ति सीर सकृत कौउ, जांनत हित-हरिबंस की ॥
राखत चरण प्रधान, आप श्रीराधाजी के ।
स्यांमा स्यांम व्यहार, कुंज मध साधे नीके । १. को। २. सोधे।
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