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छंद
चतुरदास कृत टीका सहित
।। १२० सोभूरांमजो कौ-मूल मनहर मिलत कमाल प्रतिपाल भये पायो भेद,
पल में सकल सांसौ मेट्यौ सोभूरांम को। रोम रोम लागी धुनि यौं भयौ थकित मुनि,
ऐसौ प्यालौ दयौ उन ऐन प्रांठौं जाम को। गगन मगन चित पायो हैं बिग्यांन बित,
ऐसै भयौ निपट करतार जी के काम को। राघो कहै ऐसे रंग लागि गयौ जाकै अंग,
है गयौ पटल दूरि चक्षन सू चांम को ॥२५० चतरौ नागौ निस दिवस, भक्ति करत पन पेम सौं॥ मथुरा मंडल अटन, भक्त धांमन के दरसन । दे तन धन घर बांम, कोये गुरदेवहि परसन । मिष्ट-वचन सुठ सील, संत महंतन कौं सेवत ।
उत्म धर्म आराध, जुक्ति करि हरि गुन लेवत । महिमां साध सबै कर, मगन भयो निति नेम सौं।
चतुरौ नागौ निसि दिवस, भक्ति करत पन प्रेम सौं ॥२५१ इंदव बृजभूमि सूं नेह रमै निहचे, चतरौ नग रूप अनूप है नागौ। . छंद सनकादिक भाव चुकै नहि दाव भक्ति की नांव रहै चढ़ियौं सुख स्यंध समागो।
हरि सार अपार जप रसनां दिन-राति प्रखंड रहै लिव लागौ । राघो कहै घर प्रादि गह्यौ जिनि, छाड्यो नहीं प्रति ही बड़भागौ ॥२५२
टोका इंदव ग्रेह पधार रहें गुरदेवहि, सेव करै अति साच दिखावै । छंद रूपवती तिय टैल लगावत, स्वांमि कहै स करौ हु सिखावै ।
देखि सनेह र भोग लख्यौ निति, देत बधू घर संपति भावै। धांम चढाय प्रणाम करी सुख, पाय चले बृजकू उर चावै ॥३८३ गोबिंदचंद प्रभात नवै पुनि, केसव भोग समै नंद ग्रांमैं । गोवरधन्न प्रियादह है करि, आत बृदावन चातुर जांमैं । पांवन कुण्ड रहे दिन तीन स, भूख सही पय ल्यावत स्यांमैं । मांगत है जल पात नहि पल, राति कही यह मैं करि कांमै २८४
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