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________________ १२६ ] राघवदास कृत भक्तमाल हरि ब्यासजी की टीका इंदव हो चटं थावल गांव उपेंबन, राग भयौ इत पाक बनांवें । छंद मंढ द्रुगाव कराकिनि मारिहु, देखि गलांनि भई नहि पावै । भूख सही निसि मात हुई बसि, देह धरी नइ आइ लखांवें। भोग करौ हरि कौंन करै परि, माफ करौ कर सीस धरावें ॥३८० सिष करी र बरी नगरी झट, जाप करयौ सिरदार बड़े हैं। बैठि कही उर दास भई हरि, ब्यास परौ पग मारि गड़े हैं । भृत्य भये सब पाय नये तन, पाप गये भव पार कढे हैं । द्यौस रहे बहु आइ सु पञ्चहि, है सरधा हरि भक्ति बढे हैं ॥३८१ छपे अजमेरा के प्रादी, श्री परसरांम पावन कीया ॥ २५ । मलियाढिग बहु वृक्ष, बात तूं चंदन कोनां । है हरि नांव मसाल, अंधेरा अघ हरि लीन्हां। भक्ति नारदी भजन, कथा सुनतें मन राजो। श्रीभट पुनि हरिब्यास, कृपा संत संगति साजी। भगवंत नाम औषदि पिवाय, रोग दोष गत करि दीया। अजमेरा के प्रादिनी, श्री परसरांम पावन कीया ॥२४८ मल इंदव करुणां जरणां सत सील दया, प्रसरांम यौं राम रजा' मैं रह्यो। बंद कहणी रहणी सरसौ परसौं, निश्चै दिन-राति यौं राम कह्यौ। ममता तजि के समता संग लै, भ्रम छाडि सबै दृढ़ ग्यांन गह्यो। लीन्हौ महा मथि नांव नृम्मल, राघो तज्यौ कृत काज मह्यौ ॥२४६ टीका इंदव राज महंत गयौ इक देखन, वोलि कह्यौ यह साखि बिचारौ। छंद ऊठि चले नग जात पबै जुग', बैठि गुफा हरि नांव उचारौ । नाइक प्राइ चढ़ावत संपति, और दई सुखपाल निहारौ। आइ परचौ पगि भाव न जांनत, भाव भयौ इन कौनहि सारौ ॥३८८ १. रजो। २. जुम। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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