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________________ चतुरदास कृत टीका सहित [ १२५ खोलि कहो इस दूषन भूषन, मांनि कही दुख दोष कहां हैं । का प्रबन्ध रहै कित लेसहु, प्रायस द्यौसु दिखाइ जहां हैं । भाखि बतावत औगुन सौगुन, धांम गये कहि प्रात पहां हैं । सारद ध्यान करयौ तब प्रावत, जोति करी जग बाल बहां हैं ॥ ३७७ सारद बोलि कही वह ईसुर, मांन कितौ उन सूं बतरांऊं । ईस मिले तब होत सुखी सुनि, आत महाप्रभु कै चलि पांऊं । आपस मैं रिदास करी जुग, भक्ति करौ अब नांहि हरांऊं । धारि लई उर भीरहु छाड़त होत नई इक ह्वां फिर जांऊ ||३७८ भट्ट सुनी विसरां तजि ' वनहि, द्वार परे इक जंत्र धरयो हैं । तास तर निकसै नर भूलि र, जाइ गहै खतना हु कंरयौ है । साथि स हंस लये सिष प्रावत, तुर्कन को पट जोर हरचौ है । मिल सौं कहि सोनति नांहिं न देखि दये जल क्रोध भरौ है ||३७ छपै १. तहि । मूल 3 श्रीभट सुभट ॥ २४६ प्रगट्यौ परमात्म परस हरि, भक्ति करन श्रीभट सुभट ॥ संतन कौं सुख-करन, हरन संदेह मधुर सुर । सुन्दर भाव सुसील देखि परसन्न प्रेम उर । संथ कबि उदार हेत, निति भजन करावत । उदै भयौ ससि सुजस, तास तम ताप नसावत । सिर राखे राधारवन, दूरि कीये दुबध्या कपट । प्रगट्यौ परमात्म परसि हरि, भक्ति करन श्रीभट गुर परसाद तें, दुरगा धर चर की सिख भई, खेचरी कथा सकल विख्यात, साध सर्ब संतन के समूह, सदा ही साथि ज्यौं जोगेसुर बीचि, जनक सोभा प्रति हरि ब्यास तेजस्वि जानि के, परिजा सर्व पांवन परी । श्रीभट गुर परसाद तें, दुरगा कौ दक्षत Jain Educationa International २. नसि । ३. समि । कूं दक्षत करी ॥ प्रदभूत मांनें । महिमा जांनें । रहावे । पावै । For Personal and Private Use Only करी ॥२४७ www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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