SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 199
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२४ ] राघवदास कृत भक्तमाल प्रांगन नीव दिखावत सूरज, पाय चुके निस ग्रवन कीयौ । देखि प्रभाव भयौ जग भावहु, नांव परयौ सुनिकें जन जीयो || ३७४ छपै मूल १ भूरीभट २माधौभट नोबादित के पाटि महंत, भूरीभट घट परसि, कला ३स्यांम ४राम ५गोपाल, बहुरि ६बलिभद्र गोपीनाथ ८कैसौ जु, तास के हगंगल १० कसमीरी केसव जासकै, ११ श्रीभट श्रीभट कै १२ हरिव्यास, देबी को मन हरि लईयौ । १३ गुपाल १४ सोभू १५परसरांम, जन बोहिथ रिषीकेस । राघो दीरघ सिष इते, श्रर सेवग सर्ब देस ॥२४४ कसमोरी करता कीयौ, श्री केसौभट सोभा सरस ॥ मनुखां मांही मुख्य ताप, त्रिय पाप नसावन । कर परसी हरि भक्ति, बिमुख मारग द्रुमटा वन । परचो प्रचुर दिखाय', तुरक मधुपुरी हराये । काजी दीये कढ़ाई, मारि जमनां डरवाये । यह कथा सगला ? जग मैं प्रगट, ह्वं पुनीत वाकं दरस । कसमीरी करता कोयौ, श्री केसौभट सोभा सरस ॥२४५ १. विखास । २. सकल । के सौभटजी की टोका सुखदाई | जग कीरति छाई ।। ३७५ इंदव पंडित जीति करोस बिजै दिग, हारि गये सब भीत छंद है सुखपाल चडै न बाजहु, प्रत भये नदियां पुर ब्राह्मन संक महाप्रभु लेखत, जावत देव धुनी ब्राजि गये ढिग है नृमता मुखि, नैक सुनें बालन मांहि पढौ र गढ़ौ बड़, पूछि कहूंस सुभावहि री | गंग सरूप कहीं जु लहौ द्रिग, सौक शलोक करे सुनि भीजे । कंठि करचौ इक पाठ सुनावत, देहु लगाइ दया अब कीजे । मांनि अचंभ कही किम सीखिहु, आप मयात यह सुन लीजे ॥ ३७६ Jain Educationa International ३. पूछि कहूं से । भारी । धारी ॥ For Personal and Private Use Only भद्रकर । भटबर । भययौ । उपाई । भाई । www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy