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________________ १२२ ] राघवदास कृत भत्तमाल ३नरसिंघ पारन चन्द्रोदय, हरिभक्ति बखांनी। ४माधौ ५मदसूदन-सरस्वती गीता गांनी। ६जगदानन्द प्रबोधानन्द, रामभद्र भव-जल तिरै । भगत भागवत धर्मरत, इते सन्यासी सर्व सिरै ॥२३६ प्रबोधानन्दजो को टोका इंदव श्री परबोध अनन्द बड़े जन, चैतनिजू अति होत पियारे । छंद कृष्ण प्रिया निज केलि सु कंजन, कैत भये र करे द्रिग तारे। बास बृदावन ले परकासत, दे सुख भर्म र कर्म निवारे। ताहि सुने सुनि कोटि हजारन, रंग छयो बन 4' तन वारे ॥३७१ छौँ । भागवत अध्बके रतन, जे बिष्णुपुरी संग्रह कीया । भक्ति धर्म कहि मुखि, प्रान धर्म गवन बताया। , कहां पीतर कहां हेम, निषक परिकस जब प्राया। सुमन प्रेम फल संग, बेलि हरि कृपा दिखाई। सकल ग्रंथ करि मथन, रतनावली बनाई। राघो तेरह बिचन मैं, द्वादस स्कंद दिखावीया। भागवत अध्बके रतन, जे विष्णुपुरो संग्रह कीया ॥२४० बिष्णपुरोजो की टोका इंदव होत निलाचल मांहि महाप्रभु, चौं दिसि भक्तन भीर छई है। छंद बिष्णपुरी कहि बास बनारस, हो न मुकत्तिहु चाहि भई है। पत्र लिख्यौ प्रभु माल अमोलिक, दे पठवौ मम प्रीति नई है। भागवतं मथि काढ रतन्नहि, दांम दई पठि मुक्ति दई है ॥३७२ मूल छपै . ये मुक्ति भये माठा-पती, जन राघो जपि रामजी ॥ श्वालकृष्ण २बड़भरथ, गोविन्दो ४सोठी केसौ। ५मुकन्द खेम प्रहरिनाथ भीम, हरि घरि परवेसौ। हागदास १०गजपत्य ११देवाजू १२गोपीनाथहि । १३गजगोपाल जंजाल तज्यौ, १४ खेता हरि साथहि । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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