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________________ बत्तुरदास कृत टीका सहित [ १२१ १८बिमलानंद राघौ कहै, १९रामदास परमानियो। संसार सलित निसतारने, नवका ये जन जानियौं ॥२३८ ___ सधनांजो की टीका इंदव है सधनां सु कसाई बनी अति, हेम कसोटी भली कस प्राई । छंद जीव हत न करै कुलचारहि, बेचत मांस हरी मति लाई। सालिगरांम न जांनत तोलत, संत भरै दिग सेन कराई। राति कही धरि आव वही' मम, गांन सुनौं उर रीझ्य सचाई ॥३६६ प्राइ दये अपराध करचौ हम, सेव करी हरि कौं नहीं भाई । रीझि रहे तुमपं सु करौ मन, नैंन भरे सुनि सुद्धि गमाई। धारि लये उर छोड़ि दयौ सब, श्री जगनाथ चलें उपजाई। संग चल्यौ इक संग भये जन, देखि सुगात स दूरि रहाई ॥३६७ मांगन गांव गये सु तिया इक, रूपहि देखि र रीझि परी है। राखि लये परसाद करांवन, सोइ रहे निस प्राइ खरी है। संग करौ गर काटि न होवत, कंठ कट्यौ पति तौ न डरी है। पागि कही अब काम नहीं मम, रोइ उठी इन नारि हरी है ॥३६८ आंमिल बूझत याहि हत्यौ हम, सोच परयौ कर काटिहि डारयो। हाथ कटें उठि पंथ चले हरि, पूरब पाप लख्यौ उर धारयौ। श्री जगनाथ पठी सुखपालहि, लै सधनांन चढौ सु बिचारयौ। नीठि चढ़े प्रभु पासि गये, सुपनां सम त्रास मिटी पन पारयौ ॥३६६ कासोस्वर अवधूत की टोका कासिस्वरै अवधूत बरै करि, प्रीति निलाचल मांहि बसे हैं। कृष्ण जु चैतनि प्रायस पाय र, आय बृदावन देखि लसे हैं। सेव लही प्रभु गोविंद देवहि, चाहत है मुख जीव नसे हैं। नित्य लड़ावत प्रेम बुड़ावत, पारहि पावत कौंन असे हैं ॥३७० मूल छपै भक्त भागवत धर्मरत, इते सन्यासी सर्ब सिरै ॥ १रांमचन्द्र कासुष्ट, दमोदर तीरथ गाई। रचितसुख टीकाकरी, भक्ति प्रधान बताई। १. उही। २. ग्यांन । ३. रोझि। ४. चढं। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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