________________
चतुरदास कृत टीका सहित
[ ११७ आवत दास तिनै सुख दे अति, जीभ कहै न सके सुबिचारी। उत्सव यौं गुर को सु करै दिन, मानि र द्वादस राखत ज्यारी ॥३५० साधन कौ चरणांमृत ल्यावहु, भावहि जानन दास पठायो । प्रांनि कह्यौ सब सन्तन खोरन, पांन करयौ वह स्वाद न आयो। भक्ता सभा सबही न चखावत, जांनत नैकि न छोड़ि सु प्रायो। बूझि कह्यौ तन कोढ रह्यौ फिर, ल्याय दयौ पिय के सुख पायौ ॥३५१ राजसभा सु बिराज कहै जन, वैह बिवेक कहै न प्रभाऊ। भोजन साध करै इकठे बहु, दूर' रसीट हु द्यौ नहीं भाऊ। पातरि डारि दई ब गुसांई, पगारि दई सुनि देखत दाऊ। सीतल यौ नहि देत भये मुख, दूरि करयौ भृति सेवन चाऊ ॥३५२ बाग समाज चले जन देखनहू, का दुरावत सोच परयौ है । साधन मान चहै तन घुमर, बैठि कहो कित ल्याव धरयौ है। जाइ सुनावत दास तमाखहु, पासि किनै सुनि प्रांनि करयौ है। झूठहि बैंचि र साच दिखावत, पाइ लये मन दोष हरयौ है ॥३५३ संतन सेवन गांव दयो किन, भूपति दुष्ट उतारि लयौ है। स्यांमहि नंद बिचारि करयौ जब, दास मुरारिहि पत्र दयौ है। जा बिधि होइ सु ता विधि आवहु, आवत बेगिम चैन लयौ है । प्रिष्टि करी परनाम निबेदन, भोजन मैं चलि प्रेम भयौ है ।।३५४
आइस सौ अचवन्न लयौ उन, दुष्टन मैं मुखि तापहि आये। माग मिले सचिवै सिष बोलत, प्रात पधारहु नीच बताये । कांम करै हम सौ समझावत, आत नहीं मन नेह डराये । चिंत करौ जिन धीर धरौ उर, भूप कही दिन तोन लगाये ॥३५५ आत भये गुर ल्याव कह्यौ बर, देत करामति येह सुनाई। जाहु अभू उन मांनष देखहि, जोर चले गज धूम मचाई। भाजिक हार गये नहि देखत, बोलि कही सु गिरा सुध भाई । कृष्ण हि कृष्ण कहौ तभ छाड़ हु, पेम सन्यौं सुनि देह नवाई ॥३५६ नीर बहै द्रिग होत न धीरज, आप दया करि भक्ति हु दीन्ही। दास गुपाल गरे धरि माल, सुनाव : नांव सु यौं बुधि कीन्ही ।
१. दूसर सोटउ।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org