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________________ - सुरदास कृत टीका सहित रिषीकेस ६भगवान, ७महामुनि मधु श्रीरंगा । १०घमंडी १९ जुगलकिसोर, १२जीव १३ भूगरभ उतंगा । १४ कृष्णदास १५ पंडित उभे, हरि-सेवा व्रत राखियो । श्री बृन्दाबन को मधुर रस, इन सबहिन मिलि चाखियौ ॥२३१ गोपाल भट की टीका भट्ट गुपाल बसें उर लाल, लसें प्रिय पीव बिख्यात सरूपा । भोग धरै अर राग करें, अनुराग पगे जग बात अनूपा । स्वाद लयौ बन माधुरता जिन, सीत चख्यौ सु भये रस रूपा । गुन त्यागत जीवन के गुन, लेत भले जन मैं बड़ भूपा || ३४३ अली भगवान की टोका रामहि पूजि अली भगवांन, वृंदावन आइ र और रास बिलास निहारि बिहारिहि प्यास बढ़ी रसरासि चाहि सु रास बिहारीहि पूजन, बात सुनी गुर रीति गई है । यात भये बन जाइ परे पग, ईस तुमैं सिर कैसु दई है || ३४४ बीठल बिपुल को टीका बीठलदास बरे हरिदास जु, दाह उठी गुर के स बिवोगा । रास समाज बिराज बड़े जन, बोलि लये सुनि आवत जोगा । देखि बिहार जुगल्लकिसोरहु, गांन र तांन सुने मन सोगा । जाइ मिले उस भाव धरयौ तन, और गये सब देखत लोगा || ३४५ [ ११५ भई है । नई है । लोकनाथ गुसांई को टोका कृष्ण जु चैतनिकेभृति उत्तम, लोकहु नाथ सबै सुखदाई | कृष्ण प्रिया सु बिहार रहे मन, ज्यं जल मीन निसा दिन जाई । भागवत रस गांन सु प्रांन हि, गावत है तिन सूं मितराई | माग चलै पगि लागि रसिक्कनि, नेह सु रीति दया तजि ताई || ३४६. १. उन । मधु श्री मधु आइ बृदाबन में इन, नैननि सौं कब देखहु रूपं । हेरत हे बन कुंज लता दुम, भूख न प्यास गिरणें नहि धूपं । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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