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________________ चतुरदास कृत टीका सहित पूरब जा जिम कहचौ, श्रादि श्री रूप सनातन । नारांहून भट जीव, हीव धारचौ सोही पन । गोपाल' प्रपत्ति कुल नाग के दास भाव प्रेमां प्रघट । गोबिंद इष्ट सिर भक्त भूप, मधुर बचन श्रीनाथ भट ॥२२२ 1 बल्लभ लगें ॥टे० रस श्री नारांइन भट प्रभु, बृज बल्लभ नांचन गांवन सरस, रास मंडल ललितादिकन बिहार, देखि दंपति मन महिमां बहु बृज भई, देस उधारक जीय उच्छव प्रचुर प्रमारण, चाहि इक है प्रिया पीय की । हरखें । की । जगै । बल्लभ लगे ॥२२३ राघव संत समाज मैं, प्रेम मगन निस दिन श्री नारांइरण भट प्रभु, बृज बल्लभ भट्ट नरांइन बृज धरा, गुह्य धांम प्रगट करे ॥ इष्ट येक श्रीकृष्ण और उर मैं नहीं श्रावत । भजन मृत को श्रबध, संत जन सरस लड़ावत | स्वामि बिलास हुलास, प्रांत सूं रहत रसज्ञ- जन । पक्ष सु मारत बोध, तांन कौं करें निखंडन । तहं तहं प्रभु लोला करो, जो जो तोरथ उर धरे । भट्ट नरांइन बृज धरा, गुह्य धांम प्रगट करे ॥ २२४ टीका इंदव भट्ट नरांइन ब्रजु परांइन, ग्रांमहु प्रात करे व्रत ध्यावै । छंद आप कहै इत है प्रमुकौ प्रभु, कुंड र धांम प्रतक्ष दिखावै । जागिहि जागि बिलास बतावत, जीत भये रिस की सुख पावै । बेगि चल्यो मथुरात कहैं जन, गांव उचे त्रिय सोत लखावै ॥ ३१६ छपे १. गोयल । Jain Educationa International मूल मध्वाचारिज मधुपुरी, दुती कवलाकर भट भयौ ॥ प्रति पंडित परबीन, भागवत पैंतालीस हजार हृदै, दिज कंठ बसेख | दीपक देखे | बरखें । For Personal and Private Use Only [ १०९ www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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