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चतुरदास कृत टीका सहित
[ १०३ सोच करै मति सास कहै, यह कागद मैं लिखि दे मन भाये। . जाइ कही समझाइ रिसावत, स्वैपुर के सब लोग लिखाये ।।२९० कागद ल्यावत फेर पठावत, चूकत नै दुय पाथर' मांडे । ठौर बतावत जाइ रहावत, छांनि छौंद रहै घर खांडे । नीरहि न्हांन अठाइ खिनावत, मेह भयो ठिरिये जल भांडे । साल सवारि करयौ परदा कर, झींझ२ बजी बहु अंबर छांडे ॥२६१ दे पहरांवनि गांव समूहहि, कंचन रूपक पाथर आये। येक रही उन भूलि लिखी नहि, भौत लिवै जित भूलहु जाये। जाइ सुता बिनवै पित दै इन, देत उन हरि पं मंगवाये । मात नहीं तन मांहि सुता लखि, तातहि ख्याल सबै बिसराये ॥२६२ दोइ सुता इक धांम न ब्याहत, येक सुता तजि के पति आई। गांइन दोइ फिरै पुर गावत, पावत नांहि कछू दुख पाई। कोइ बतावत आइ र गावत, आप कहावत राम सहाई। जो हरि चावहु बाल मुंडावह, लाल लड़ावहु यौं मनि भाई ॥२६३ दोउ सुता मिलि गाइन हू जुग, नाचत है चहु भाव दिखावै । मामहि सालग भूप दिवांनहि, बात निषिद्धहि आप लखावे । पंडित दीरघ और जुरे सब, भांड करे इनको समझाव । भूप बुलावत भृत्य पठावत, आइ कही दरबार बुलावे ।।२६४ जावत हैं नृप पासि रहो, चहु साथि चले हम हू न डर हैं। लार भई गति लेत नई रस, भीजि गई वह नृत्य करै हैं। वैसहि प्रावत पंच छिपावत, तौउ कहै तिय क्यू र धरै हैं। भक्ति न जांनत बेद बखांनत, नारि कहो सुकदेव बरे हैं ॥२६५ येक कही द्विज भात भरचौ हद, ठांव दये अगनंत सुता के। भूप लगे पग भक्ति करो जगि, कुंजर लागत नांहि कुता के।
और सुनौ इक ठाकुर देवल, गावत राग किदारउ ताके। माल हुती हरि के गलि मैं उर, प्राइ गई नरसी महता कै ॥२६६ ब्राह्मन जाइ सिलावत भूपहि, हार पुयौ कच तागस टूट्यौ । मात कहै सुत कान धरौ मति, राज स बॉनि बुरी चलि छूट्यौ ।
१. माथर।
२. झींक ।
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