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चतुरदास कृत टीका सहित
[ ९५ तास पछौपै सुत सरस, गिरधर गोकलनाय निधि । पण प्रांतज्ञा कौं भले, जन राघो पुरवै रान रिधि ॥२०७
बल्लभाचारय को बरनन : टोका इंदव मूरति-पूजन भाव घनूं उर, यौं मन मैं सब ही जन दीजे । छंद वैहि करी हरि धांमन धांमन, सेवत है सुख प्रांखिन लीजे।
है सुघुराइ अवद्धि महा निति, राग रु भोग बहौ बिधि कीजे। नांव सुबल्लभ रीति सबै प्रभु, गोकल गांव-स देख तरीजे ।।२५६ देखन गोकल संतहि आवत, होत मुदित्त-स रीति हि न्यारी। रूंख सु खेजर रूप भुलावत, देखि दरस्स भयो सुख भारी ।
आइ निहारत पूजन नांहि न, फेरि गयो कहि जाहु तयारी। देखि घणे वत झूलत ठाकर, जाइ कही तव लेहु सभारी ॥२६०
खि हुई फिरि तौ नहि भूलत, देहु दिखाई अब मम रूपं । आप कहै अबकै फिरि देखहु, हेत लगाइ सुजांनि अनूपं । जातहि पावत कंठ लगावत, नैन भरावत पाइ सरूपं । राति रह्यौ स भजै र ज-जै हरि, होत प्रकास दया अनुरूपं ॥२६१
मल छपै श्रीबल्लभ सुत बिठलेस ने, लाल लड़ाये नंद ज्यूं ॥
परचा मैं निपुन, राग अर भोग बिबिध कर। गहरणां बसतर सेज, रचत रचनां रचसुंदर । बृजपति उहै गोकलज, धांम सोहै दीछत को। घोष चंद तहां बिदत, भिभो वासव ईछत को। राघो भक्ति परताप तें, दीपत राका चंद ज्यूं। श्रीबल्लभ-सुत बिठलेस नैं, लाल लडाये नंद ज्यूं ॥२०८
टोका इंदव कायथ हौ तिपुरा हरि भक्त सु, सीत समैं दगली पहुंचावै । छंद मोल घणौं पट लेवत हौं अट, नांथ चढ़ावत यौं मन भावे ।
आइ गयो सम यौ नृप लूटत, खांवन धांम सु अंन न पावै । सीतहु आवत दैन उभावत, द्वाति हुती इक बेचन जावै ॥२६२ एक रुपैया मिल्यौ पट ल्यावत, रंग सुरंग धरयौ घर माहीं। हेत घणौं द्रिग धार बहै जल, देहि घणौं प्रभु और मंगाहीं।
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