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राघवदास कृत भक्तमाल
नहि कहौ किनि राखि मनो-मन, कांन परे उठि जावत त्यूं है । जांनि गये रम जात भये दुख, पात नये बिन पेसिं-सु ज्यूं है ।। २५६ नीर अनादिक त्याग दये दिन, तीन भये फिरि पाइ न बैसौ । भाग बिनां तिय क्यूं र कही बिय, संतन सेव न हौ भृत्य कैसौ । अंबर बोलि कहै हरि मैं हुत, भूख मरौ मत मांनि प्रदेसौ । प्रेम तुम्हार करौ बसि है मम, सेव करूं फिरि मैं घरि बैस ॥ २५७ चौक पर सुनि भक्ति करी किम, आप हरी पहि सेव कराई । भक्त कहै मम संत बड़े बड़, भक्ति करी नहि लोक दिखाई । आप दयाल निहाल करै जन, रंच करै तिन भौत मनाई । धम बिराजत मैं नहि जांनत, आइ मिलै अब पाइ पराई ॥ २५८
छपै
मूल
भाव सहित भागवत कौं, निरांनदास नीकेँ कह्यौ ॥ नवल्या - कुल परसिधि, मिश्र संज्ञा सत्य पाई । सुति सुमृति प्रतिहास, ग्रंथ श्रागम बिधि गाई । बक्ता नारद व्यास, बृहसपति सुक सनकादिक । इन सम है सरबज्ञ, सोत ज्यूं चलै गंगादिक । संत समागम होत निति, प्रेम-पुंज राघो लह्यौ । भाव सहित भागवत कौं, निरांनदास नींकें कौ ॥२०५ बिष्णु-स्वामि पुर सारि मधि, लाहौरी लाहौ लीयौ ॥
नांम निरायनदास, मिश्र मिश्रत धम भाख्यौ । भक्ति भेद भागवत, सार सुख मुनि ज्यौं चाख्यौ । ब्यास- बचन बिसतार, कही गद-गद हृ बांणों । साध संगति गुर-धर्म, अनंत प्रमोघे प्रांणों । जन राघो नाथ कृपा भई, खीर-नीर निरनैं कीयौ । बिष्णु-स्वामि पुर सार मधि, लाहौरी लाहौ लीयौ ॥२०६ परण परतंग्या कौं भले, जन राघो पुरवै रांम रिधि ॥ बलभ गुसांई हरिबल्लभ, ताहि हरि गोकल प्राप्यो । सदा नाथ रछपाल, श्राप श्रपरगौ करि थाप्यो । ता सुत बिठलेसुर भली, बिधि भक्ति जु साही । श्ररणौ मत मजबूत, थप्यौ हरि पैज निबाही ।
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