SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 164
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चतुरदास कृत टीका सहित [ ८९ दे तन प्रांन धनादिक पावत, प्रांनहु बात न चाहत भाई। साह तुला तुलि बांटत है धन, लै स' गये सब नाम न जाई । लेन खिनावत फेरि दये जुग, तीसर के चलि साथि भनाई । लीजिये हाथि कछू हमरौ भल, चाहि नहीं द्विज देहु लुटाई ॥२२६ साह करै हठ ले तुलसी-दल, रामहि नाम लिख्यौ अध दीजे । हासि करौ मति ल्यौ हमरी गति, तोलि बरोबरि तौ किम लीजे । कांटहि मेल्हि चढावत कंचन, होइ बरोबरि नाहिस खीजे । बौत चढे इक ताक धरयो धन, जातिहु पां तहु कौं न नईजे ॥२२७ चित भई सबही नर नागर, नाम कहै इक और करीजे । तीरथ न्हांन ब्रतादिक दांन, किया सब ांन सु मांहि धरीजे । हारि रहे सु पला नहि ऊठत, साह कहै इतनू इ लईजे। लेरि कर किम नांहि भयो सम, नाम यहै अधिकार सुनीजे ॥२२८ रूप धरयौ हरि ब्राह्मन कौ, अति-दूबल सो पर्चा व्रत देखै । ग्यारस के दिन जाचत अंनहि, अाज न द्यौं परभाति बसेखै । बाद करै दहु सोर भयौ बहु, नांम बचन्न कहेस अलेखै । अस्त भयो दिन प्रांन तजे द्विज, नाम-प्रभाव स ग्यारिस पेखै ॥२२६ लाकड़ ल्याइ चिताहि बनावत, गोद लयो द्विज साथि जरौंगो। रांम हसे तव पारिष लेत सु, छोड़ि करै मति नांहि करौंगो। भक्तन प्यास लगी जल ल्यावत, भूत बध्यौ अति मैं न डरौंगौ। लै पद गावत झींझ बजावत, रूप करयौ हरि यौहीं तिरौंगौ ॥२३० जात चले मग खंभ खरौ इक, पूछत मारग बोलत नाहीं । गात भये पद ताल बजावत, काढ़ि हरी कर बोलि बतांहीं । संकट बैल जुप्यौ स गयौ मरि, रोइक नामक पाइ परांहीं। लै कर झींझ बजावत गावत, बैल उठ्यौ जुपि के घरि जांहीं ॥२३१ जैदेवजी को बरनन-मूल छपै यम जैदेव सम कलि मैं न कबि, दुज-कुल-दिनकर श्रौतरचौ ॥ श्रवन गीत गोबिद, अष्ट-पद दई असतोतर । हरि अक्षर दीये बनाइ, प्राइ प्रगटेस प्रांगवर । १. लैसु। २. ई। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy