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राघवदास कृत भक्तमाल
बीति गये दिन दोइ न पीवत, सोइ रह्यौ निसि नींद न आवै । प्रात भयौ अवटाइ लयौ फिरि, जा अरप्यौ अब पी मम भावै । जोड़ि कहौं कर जो नहि पीवत, खंजर खाइ मरौं गरि लावै । हाथ गह्यौं लखि पीवत हौं सब, पीवत देखि सु आप खुसावै ॥२१९ अाइर पूछत बालक सुं हित, दूधहि बात कहौ कहि नानां । औलु करी तव दोइ दिनां नहि, पीवत खंजर लै गर-ठांनां। पीत भयो तब खोसि लयो कछ, होत खुसी सुनि साखि भरांना। जाइ धरयौ पय पीवत नांहि न, लेत छुरी जब पीवत मांनां ॥२२० भूप तुरक्क कहै बसि साहिब, द्यौ अजमत्तिक मोहि मिलावौ। है अजमत्ति भरै दिन क्यौं हम, साधन कौं रिझर्दै उर भावौ । वा परभाव वुलाइ यहां लग, गाइ जिवाइ घरां तुम जावौ । रांमहि ध्याइर गाइ जिवावत, देखि परयौ पग गांव रखावौ ॥२२१ नाम करौ हम हं सुख पावत, चाहि नहीं किम सेज दई है। सोस धरी जब लोग दये करि, नांहि करी जल मांहि बई है। आइ कही पतिस्याह बुलावत, आवत मांगि करात नई है। काढ़ि दिखावत उतम उतम, लेहु पिछांनि सु आंखि भई है ॥२२२ पाइ परयौ फिरि राख हरी पहि, नांम कहै मति संत दुखावै । मांनि लई फिरि नांहि बुलावत, गावत रांमहि देव लजावै । बाहरि भीर निहारि उपांनत, बांधि लई कटि जा पद गावै। देखि लई किनि चोट दई उन, देत धका चित मैं नहि आवै ।।२२३ ऊठि गये पिछ-वार लयो पद, झांझ बजावत रांम रिझावै । चोट दिवावत मोहि सुहावत, ठौरहु भावत नित्ति रहावै।
आप सुनी हरि है करुनांमय, देवल होइ दयाल फिरावै । मंदिर मांहि हुते सु जिते नर, आब गई जन पाइ परावै ॥२२४ लाइ लगी घर मांहि जरयौ सब, जो अवसेष रह्यौ वह नाख्यौ। नाम कहै यह ल्यौ सगरौ तव, आप हसे हरि मो लखि राख्यौ । है तुमरौ घर अांनक हाजर, छान छवाय खुसी प्रभु भाख्यौ। पूछत हैं नर छाइ दई किन, देहु छवाई स देवन दाख्यौ ।।२२५
१. रपायौ।
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