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चतुरदास कृत टीका सहित
पैज रही पतिस्याह द्रबार मैं, गाइ जिवाइ के बच्छ मिलायौ। राघो कहै परचौ परचे पर, देहुरौ फेरि दुनी दिखरायौ ॥२०० नांमदेव नाम नृदोष रटै रुचि, पाप भजै कुचि देह तें दूरी। उर थें अपराध उठाइ धरे दस, रांम भये बस पात ज्यूं पूरी। जाप जपै निह' पाप नृम्मल, भीर परै गहि साच सबूरी। राघो कहै जल मैं थल मैं, स चराचर मैं हरि देखे हजूरी ॥२०१
टीका बांमसदेव भगत्त बड़ो हरि, तास सुता पति-हीन भई है। संबत बारह मांहि भई तब, तातहि ठाकुर सेव दई है। तोर मनोरथ सिद्धि करै प्रभु, प्रीति लगाइ रहो तम ईहै। सेव करी अति बेगि भये खुसि, भोग चहै अपनाई लई है ।।२१४ भ्यौ गरभादिक बात करै सव, साखत लौगन के चित भाई। कांनि परी यह बांमसु देवहि, ठीक करी हरि की किरपाई। बाल भयो तब नामस देवहि, राइ हुतौ सब देत बधाई। होत बड़ो हरि सौं हित लागत, रीति जगत्तहु नांहि सुहाई ॥२१५ खेलत है निति पूजन ज्यू करि, घंट बजाइर भोग लगावै। ध्यांन धरै परनाम करै जब, संझ परै तब सैंन करावै । नांम कहै निति बामहि देवस, पूजन देहु भले मन भावे । गांवहि जावत आत दिनां त्रिय, दूध पिवाइन पीय सुहावै ॥२१६ है बिरियां कब आवत है दिन, बारहिबार कहै नहि आई। बार हुई तब दूध चढ़ावत, सेर उभै अवटात कडाई । प्रीति लगी अवसेर घणी उर, कंठ घुटै द्रिग नीर बहाई। ढील लगी बहु मात खिजे अब, बेर करै जिन लै करि जाई ॥२१७ ले तबला हरि पासि चल्यौ मधि, दूध निवात सुगंध मिलाई। है चित चाव डरै अगि ता करि, दास करै मम है सुखदाई। मंद हसै अतिकांत लसै उर, भाव बसै सिसु बुद्धि लगाई। पावन२ मैं मन आड़ करै जन, देखि परयौ कहि पीहरि राई ॥२१८
१. तिह। २. पांचन।
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